एर्दोगन के खिलाफ सीरियाई जनरल ने भारत से मांगी मदद — क्या बदले की पटकथा तैयार हो रही है?
विश्व राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है। इस बार मामला तुर्किए, सीरिया और भारत के त्रिकोणीय समीकरण से जुड़ा है। सीरिया में कुर्दों का नेतृत्व करने वाले प्रमुख जनरल मजलूम आब्दी ने भारत से एक अहम अपील की है — उन्होंने भारत से मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने में “बड़ी भूमिका निभाने” की मांग की है। भारत के लिए यह एक रणनीतिक अवसर भी है और चुनौती भी, क्योंकि इस अपील से तुर्किए की एर्दोगन सरकार बौखलाहट में आ सकती है।
जनरल मजलूम आब्दी कौन हैं?
जनरल मजलूम आब्दी, जिन्हें अमेरिका सहित कई पश्चिमी देश कुर्दिश बलों का सम्मानित नेता मानते हैं, वहीं तुर्किए की सरकार उन्हें आतंकवादी करार देती है। आब्दी ने इस्लामिक स्टेट (ISIS) के खिलाफ अमेरिका के साथ मिलकर जमीनी स्तर पर संघर्ष किया और सीरिया में कुर्दों के आत्म-शासन की पैरवी की। वे Syrian Democratic Forces (SDF) के कमांडर हैं और तुर्किए की नीतियों के प्रबल विरोधी भी।

भारत से क्यों मांगी मदद?
हाल ही में आब्दी ने भारत से सीधी अपील की है कि वह पश्चिम एशिया में स्थिरता बनाए रखने में “एक निर्णायक भूमिका” निभाए। उन्होंने कहा कि भारत न केवल एशिया की बड़ी शक्ति है, बल्कि एक संतुलित और निष्पक्ष राष्ट्र के तौर पर उसकी विश्वसनीयता भी अधिक है।
आब्दी की अपील के पीछे कुछ अहम कारण हो सकते हैं:
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भारत की गैर-पक्षपाती छवि।
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ऐतिहासिक रूप से भारत की कुर्दों के प्रति सहानुभूति।
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तुर्किए और भारत के बीच हालिया तनाव, जो कि कश्मीर पर एर्दोगन के बयानों से और गहरा हुआ।
एर्दोगन और भारत के संबंध पहले से तनावपूर्ण
तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोगन कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का खुलेआम समर्थन कर चुके हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की आलोचना की है, जिससे भारत-तुर्की संबंधों में खटास आई है। ऐसे में जनरल आब्दी की भारत से की गई अपील को कई लोग “राजनीतिक प्रतिशोध का प्रस्ताव” भी मान रहे हैं।
क्या भारत इस पेशकश को स्वीकार करेगा?
भारत की विदेश नीति अब तक गैर-संरेखण (Non-alignment) और रणनीतिक संतुलन की रही है। भारत ने सीरिया संकट पर अब तक संयम और तटस्थता बनाए रखी है। लेकिन:
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अगर भारत इस दिशा में कोई भूमिका निभाता है, तो यह अमेरिका और यूरोप के साथ उसके रिश्तों को और मज़बूत कर सकता है।
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दूसरी तरफ, तुर्किए के साथ संबंध और बिगड़ सकते हैं, जो वर्तमान में वैसे भी आदर्श नहीं हैं।
भारत के लिए रणनीतिक लाभ
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मध्य पूर्व में प्रभाव बढ़ाना: यदि भारत कुर्दों के साथ संवाद स्थापित करता है, तो उसे पश्चिम एशिया में एक मजबूत रणनीतिक आधार मिल सकता है।
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ISIS-विरोधी भूमिका: भारत का वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ स्पष्ट रुख है। कुर्दों का समर्थन करके वह इस नीति को सशक्त कर सकता है।
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एर्दोगन को कूटनीतिक जवाब: यह भारत के लिए एक अवसर हो सकता है तुर्किए को उसकी कश्मीर नीति पर अप्रत्यक्ष रूप से जवाब देने का।
चुनौतियां भी कम नहीं
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तुर्किए से द्विपक्षीय व्यापार और रणनीतिक रिश्तों पर असर।
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मध्य एशिया में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा से जुड़े खतरे।
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चीन और रूस जैसे देशों की प्रतिक्रियाएं, जो सीरिया मुद्दे पर अलग दृष्टिकोण रखते हैं।
जनरल मजलूम आब्दी की भारत से की गई अपील केवल एक कूटनीतिक अनुरोध नहीं, बल्कि एक संकेत है — एक संभावित बदलाव का। भारत अब सिर्फ एक ‘उभरती अर्थव्यवस्था’ नहीं, बल्कि वैश्विक कूटनीति का मजबूत स्तंभ बनता जा रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस अपील का क्या जवाब देता है — चुप्पी, संवाद या रणनीतिक समर्थन?
क्या भारत मध्य पूर्व में एक नई भूमिका निभाने को तैयार है? इतिहास जल्द जवाब देगा।
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