चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मीटिंग में बोले एस जयशंकर ‘दोनों ने कठिन समय देखा, अब आगे बढ़ना चाहते हैं’,
S Jaishankar – Wang Yi Meet:
भारत और चीन के बीच लंबे समय से तनावपूर्ण रिश्तों के बावजूद एक नया अध्याय शुरू करने की कोशिशें जारी हैं। नई दिल्ली में आयोजित बैठक में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी आमने-सामने आए। यह मुलाकात विशेष प्रतिनिधियों की 24वीं वार्ता के अवसर पर हुई, और इसे बेहद अहम माना जा रहा है क्योंकि यह वांग यी की पहली भारत यात्रा थी।
📌 बैठक का मुख्य एजेंडा
दोनों नेताओं की बैठक में तीन बड़े मुद्दे प्रमुख रहे –
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द्विपक्षीय संबंध: हाल के वर्षों में बिगड़े रिश्तों को सुधारने पर जोर।
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सीमा विवाद और तनाव: लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक के मुद्दों पर बातचीत।
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आगामी SCO समिट: क्षेत्रीय सहयोग और सुरक्षा पर चर्चा।
जयशंकर ने इस अवसर पर कहा:
“भारत और चीन ने कठिन समय देखे हैं, लेकिन अब दोनों देश आगे बढ़ना चाहते हैं।”
यह बयान संकेत देता है कि भारत रिश्तों में व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने को तैयार है।
⚡ कठिन दौर की पृष्ठभूमि
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डोकलाम विवाद (2017) और गलवान घाटी संघर्ष (2020) ने रिश्तों को सबसे निचले स्तर पर पहुंचा दिया।
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सीमा पर सैनिकों की तैनाती और लगातार तनाव ने दोनों देशों के बीच अविश्वास को गहरा किया।
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व्यापार के मोर्चे पर भारत ने कई चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया, जबकि चीन भारतीय उत्पादों के लिए नई बाधाएं खड़ी करता रहा।
इन्हीं हालात में यह बैठक रिश्तों को “रीसेट” करने का मौका मानी जा रही है।
🌐 चीन का रुख
वांग यी ने भी बैठक में सकारात्मक संकेत दिए। उन्होंने कहा कि भारत और चीन को एशिया की दो बड़ी ताकतों के रूप में प्रतिस्पर्धा से ज्यादा सहयोग पर ध्यान देना चाहिए।
उन्होंने SCO और BRICS जैसे मंचों पर साझा प्रयासों की आवश्यकता पर जोर दिया।
🇮🇳 भारत की रणनीति
भारत साफ कर चुका है कि सीमा पर शांति और विश्वास बहाली के बिना सामान्य रिश्ते संभव नहीं हैं।
जयशंकर ने दोहराया कि सीमा विवाद हल होना और पारदर्शी संवाद आगे बढ़ने की पहली शर्त है।
भारत का यह रुख बताता है कि नई दिल्ली रिश्तों को सुधारना चाहती है, लेकिन बिना अपनी संप्रभुता से समझौता किए।
📊 बैठक से क्या उम्मीदें?
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सीमा तनाव में कमी: सैन्य स्तर पर बातचीत की नई शुरुआत।
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व्यापार में संतुलन: भारत लंबे समय से चीनी आयात पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है।
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क्षेत्रीय राजनीति में सहयोग: खासकर अफगानिस्तान, आतंकवाद और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में।
🛑 चुनौतियाँ
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चीन की आक्रामक नीतियाँ और विस्तारवादी सोच।
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भारत पर दबाव बनाने के लिए पाकिस्तान को इस्तेमाल करने की पुरानी रणनीति।
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अमेरिकी फैक्टर – भारत अमेरिका का रणनीतिक साझेदार बनता जा रहा है, जो चीन को असहज करता है।
- भारत और चीन — एशिया में दो महाशक्तियाँ, जो हाल के वर्षों में कई चुनौतियों से जूझीं, एक बार फिर रिश्तों में नया अध्याय जोड़ने की तैयारी में हैं। यह मौका रहा 24वीं “विशेष प्रतिनिधि वार्ता” का, जब चीनी विदेश मंत्री वांग यी पहली बार भारत यात्रा पर पहुंचे और एस जयशंकर से नई दिल्ली में मुलाकात की।
यह बैठक सिर्फ दुभाषिया संपर्क नहीं थी, इसमें सीमा विवाद, द्विपक्षीय संबंध और वैश्विक समीकरणों पर सार्थक वार्ता हुई।
पहली बार भारत दौरे पर वांग यी, ऐतिहासिक क्षण
चीनी विदेश मंत्री वांग यी का यह दौरा कई मायनों में अहम है। एक तो यह 2020 के गलवान संघर्ष के बाद द्विपक्षीय संबंधों में आई तल्ख़ी के बाद दोनों देशों का उच्चस्तरीय संवाद है। दूसरा, यह शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट के ठीक पहले हो रहा है, जिससे साफ है कि दोनों पक्ष संबंधों के अगले पायदान की तैयारी में हैं।
सीमा विवाद और विश्वास की बात
बैठक में सीमा विवाद सबसे बड़ा मुद्दा रहा। एस जयशंकर ने खुलकर कहा,
“हमारे संबंधों में किसी सकारात्मक गति की नींव यह है कि सीमा क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनी रहे। तनाव कम करने की प्रक्रिया आगे बढ़नी चाहिए। दोनों देश कठिन दौर देख चुके हैं, अब आगे बढ़ना हमारा लक्ष्य है।”
जयशंकर ने आपसी सम्मान, संवेदनशीलता और हित के तीन सिद्धांतों को प्रमुखता दी। उन्होंने दो टूक कहा कि मतभेद विवाद, प्रतिस्पर्धा या संघर्ष में नहीं बदलने चाहिए। “रचनात्मक दृष्टिकोण” की आवश्यकता जताई, ताकि भविष्य में गलतफहमियाँ जगह न बना सकें।
SCO समिट केंद्र में, सहयोग की संभावना
वार्ता में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट को लेकर भी चर्चा हुई। जयशंकर ने बताया कि भारत ने SCO के अध्यक्ष पद के दौरान चीन से करीबी सहयोग किया और उम्मीद है कि यह जारी रहेगा। वहीं, वांग यी ने फिर से कैलाश मानसरोवर यात्रा के बहाल होने का जिक्र किया, जो दोनों देशों के बीच पारंपरिक भरोसे को दर्शाता है।
एस. जयशंकर और वांग यी की मुलाकात रिश्तों में एक नया पन्ना खोलने का प्रयास है। दोनों देश जानते हैं कि प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ सहयोग भी जरूरी है। अगर सीमा विवाद हल करने की दिशा में ठोस कदम उठते हैं, तो यह एशिया और पूरी दुनिया की राजनीति के लिए ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है।
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