नियमों की अनदेखी से बढ़ी समस्या — आवारा कुत्तों पर पुराने आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा
नई दिल्ली: देशभर में आवारा कुत्तों के बढ़ते मामलों और उनके हमलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में बुधवार को अहम मोड़ आया। कोर्ट ने आवारा कुत्तों के प्रबंधन को लेकर दिए गए अपने पुराने आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। साथ ही, कोर्ट ने साफ कहा कि
दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया कि हर साल भारत में लगभग 37 लाख डॉग बाइट (कुत्तों के काटने) के मामले सामने आते हैं, जिनमें से 18,000 से ज्यादा लोगों की मौत रेबीज के कारण हो जाती है।
“सारी समस्या नियमों का पालन नहीं करने की वजह से है।”
क्या है मामला?
मामला आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या और उनके हमलों से जुड़ा है। पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों से ऐसी घटनाओं की भयावह तस्वीरें सामने आई हैं, जहां छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को आवारा कुत्तों ने गंभीर रूप से घायल किया।
कुछ याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि पहले के आदेश, जिसमें कुत्तों के प्रति संवेदनशीलता और उनके पुनर्वास की बात कही गई थी, पर रोक लगाई जाए और तुरंत कड़ी कार्रवाई हो।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि समस्या आदेश में नहीं, बल्कि उसके सही तरीके से लागू न होने में है।
कोर्ट ने कहा:
“अगर स्थानीय प्रशासन, नगर निगम और संबंधित एजेंसियां नियमों का पालन करें, तो न कुत्तों के साथ अमानवीय बर्ताव होगा और न ही इंसानों को खतरा रहेगा।”
अदालत ने यह भी कहा कि कुत्तों को मारने का समाधान न तो मानवीय है और न ही कानूनी। इसके बजाय, नसबंदी, टीकाकरण और पुनर्वास पर जोर देना चाहिए।


दिल्ली सरकार के आंकड़े चौंकाने वाले
दिल्ली सरकार की ओर से पेश किए गए आंकड़े स्थिति की गंभीरता दिखाते हैं:
-
37 लाख से ज्यादा लोग हर साल कुत्तों के काटने का शिकार होते हैं।
-
18,000 से अधिक मौतें हर साल सिर्फ रेबीज की वजह से होती हैं।
-
ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या और भी गंभीर है, क्योंकि वहां समय पर टीकाकरण और इलाज नहीं मिल पाता।
पुराना आदेश क्या कहता है?
सुप्रीम कोर्ट का पुराना आदेश कहता है कि:
-
आवारा कुत्तों को मारा नहीं जा सकता।
-
Animal Birth Control (ABC) प्रोग्राम के तहत उनकी नसबंदी और टीकाकरण करना होगा।
-
पकड़े गए कुत्तों को उसी इलाके में वापस छोड़ा जाए, जहां से उन्हें पकड़ा गया था।
-
स्थानीय प्रशासन और नगर निगमों की जिम्मेदारी है कि कुत्तों और इंसानों के बीच टकराव को कम किया जाए।
विशेषज्ञों की राय
पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि समस्या का असली कारण है —
-
नियमों का पालन न होना
-
नगर निगमों की लापरवाही
-
अवैध कचरा डंपिंग, जिससे कुत्तों को खाना आसानी से मिल जाता है
-
नसबंदी और टीकाकरण कार्यक्रम का धीमा होना
दूसरी ओर, कई लोग मानते हैं कि शहरों और कस्बों में बढ़ते डॉग अटैक के चलते आम नागरिकों में भय है, जिसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।
आगे का रास्ता
विशेषज्ञ और अदालत दोनों इस बात पर सहमत हैं कि समाधान कुत्तों को खत्म करने में नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और संवेदनशील प्रबंधन में है।
-
नसबंदी कार्यक्रम को तेज़ करना
-
रेबीज टीकाकरण का दायरा बढ़ाना
-
कचरा प्रबंधन में सुधार करना
-
लोगों को कुत्तों के साथ सुरक्षित तरीके से रहने के बारे में जागरूक करना
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला याद दिलाता है कि किसी भी समस्या का हल कानून को दरकिनार करके नहीं निकाला जा सकता। चाहे वह इंसानों की सुरक्षा हो या जानवरों के अधिकार, दोनों को संतुलित तरीके से देखना ज़रूरी है।
जब तक स्थानीय निकाय, प्रशासन और आम लोग मिलकर नियमों का पालन नहीं करेंगे, न तो डॉग बाइट की घटनाएं कम होंगी और न ही रेबीज से मौतों का सिलसिला थमेगा।
Sunita Williams ने धरती पर रखा कदम, जानिए उनके इस 9 महीने की अद्वितीय साहस की कहानीHathras का अय्याश प्रोफेसर! 30 से ज्यादा छात्राओं को अपने जाल में फंसायाजस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा: नए राष्ट्रपति बने मार्क कार्नीक्या रोहित शर्मा का ये आख़िरी वनडे हैं ? सूत्रों के हवाले से ये बड़ी खबर आ रही हैं Mohammad Shami के एनर्जी ड्रिंक पर बवाल, मौलवी बोले- वो गुनाहगार…अपराधी
theguardian.com thetimes.co.uk theaustralian.com.au












Users Today : 7
Views Today : 11