नेपाल में फेसबुक-यूट्यूब बैन पर Gen-Z का बवाल: संसद तक पहुंचे प्रदर्शनकारी, 16 की मौत, 100 से ज़्यादा घायल
नेपाल में सरकार द्वारा फेसबुक और यूट्यूब जैसे लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगाने के बाद माहौल गर्म है। खासकर Gen-Z और युवा वर्ग इस फैसले को अपनी आज़ादी पर हमला मान रहे हैं। अचानक हुए इस कदम ने न सिर्फ सड़कों पर प्रदर्शन भड़काए बल्कि संसद तक हलचल मचा दी। विरोध के दौरान हुई झड़प में एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई, जिससे हालात और गंभीर हो गए।
यह बैन क्यों लगाया गया?
नेपाल सरकार ने कुछ महीने पहले एक नया नियम लागू किया था। इसके तहत सभी विदेशी मोबाइल ऐप्स को देश में काम करने के लिए लोकल स्तर पर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य था।
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सरकार का कहना है कि ये कंपनियां बिना टैक्स दिए और बिना नियमन के करोड़ों रुपये कमा रही थीं।
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साथ ही, डेटा सुरक्षा और साइबर क्राइम को रोकने के लिए यह कदम जरूरी बताया गया।
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तय समय सीमा में फेसबुक और यूट्यूब ने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया, जिसके चलते उन पर बैन लगा दिया गया।
कब और कैसे भड़का प्रदर्शन?
जैसे ही सरकार ने बैन की घोषणा की, खासकर काठमांडू और बड़े शहरों में युवा सड़क पर उतर आए।
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यह प्रदर्शन अचानक छोटे-छोटे समूहों से शुरू हुआ और फिर बड़े आंदोलन का रूप ले लिया।
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हजारों छात्रों और युवाओं ने हाथों में पोस्टर लेकर सरकार के खिलाफ नारे लगाए।
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कुछ ही घंटों में यह भीड़ संसद परिसर तक पहुंच गई।
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पुलिस ने स्थिति संभालने की कोशिश की, लेकिन टकराव बढ़ गया।


प्रदर्शनकारी क्या चाहते हैं?
युवाओं की मांग है कि सरकार तुरंत बैन हटाए।
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उनका कहना है कि फेसबुक और यूट्यूब सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि रोजगार, शिक्षा और बिज़नेस का प्लेटफॉर्म हैं।
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हजारों कंटेंट क्रिएटर, छोटे व्यापारी और फ्रीलांसर इन्हीं प्लेटफॉर्म्स पर निर्भर हैं।
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Gen-Z का मानना है कि सरकार ने उनकी राय लिए बिना अचानक फैसला लिया, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
संसद के भीतर क्या हुआ?
प्रदर्शनकारियों के संसद भवन में घुसने के बाद सांसदों को सुरक्षा घेरे में लेना पड़ा।
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विपक्ष ने इसे युवाओं की आवाज बताया और सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की।
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सत्ता पक्ष का कहना है कि नियम सबके लिए बराबर हैं और कंपनियों को कानून मानना ही होगा।
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हालांकि, एक प्रदर्शनकारी की मौत की घटना ने संसद में बहस को और तीखा बना दिया है।
सरकार का पक्ष
नेपाल सरकार का कहना है कि यह कदम किसी की आज़ादी छीनने के लिए नहीं बल्कि राष्ट्रीय हित में उठाया गया है।
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अधिकारी मानते हैं कि अगर फेसबुक और यूट्यूब रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी करते हैं तो बैन हटाया जा सकता है।
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सरकार ने यह भी दावा किया कि बैन अस्थायी है और बातचीत का रास्ता खुला है।
कहाँ तक पहुँची अंतरराष्ट्रीय चर्चा?
यह मामला नेपाल की सीमाओं से बाहर भी गूंजने लगा है।
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कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इस कदम की आलोचना की है।
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सोशल मीडिया पर #NepalProtest और #GenZVoices जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
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पड़ोसी देशों के यूजर्स भी इस फैसले पर चर्चा कर रहे हैं और युवाओं के साथ समर्थन जता रहे हैं।
आगे क्या होगा?
स्थिति अभी नाजुक है।
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सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच बातचीत की कोशिशें जारी हैं।
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विपक्ष ने साफ कहा है कि अगर सरकार ने युवाओं की आवाज नहीं सुनी तो आंदोलन और तेज होगा।
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विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को किसी मध्य रास्ते पर आना होगा, वरना हालात और बिगड़ सकते हैं।
निष्कर्ष
नेपाल में फेसबुक और यूट्यूब पर बैन सिर्फ एक तकनीकी या कानूनी मामला नहीं रह गया, बल्कि यह जनता बनाम सरकार की लड़ाई में बदल चुका है।
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युवा इसे अपने भविष्य और आज़ादी का सवाल मान रहे हैं।
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सरकार इसे आर्थिक और सुरक्षा से जुड़ा कदम बता रही है।
अब देखना यह है कि क्या कंपनियां सरकार की शर्तें मानती हैं या युवाओं के दबाव में सरकार बैन हटाती है। लेकिन इतना तय है कि यह आंदोलन नेपाल की राजनीति और समाज पर गहरा असर डालेगा।
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