पीएम मोदी की ग्रेजुएशन डिग्री से जुड़ी जानकारी का नहीं होगा खुलासा, दिल्ली हाई कोर्ट ने रद्द किया CIC का आदेश
नई दिल्ली – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ग्रेजुएशन डिग्री और शैक्षणिक रिकॉर्ड से जुड़ा विवाद लंबे समय से चर्चा में है। अब इस मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि पीएम मोदी के शैक्षणिक दस्तावेजों को सार्वजनिक करना अनिवार्य नहीं है। अदालत ने मुख्य सूचना आयोग (CIC) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें प्रधानमंत्री की डिग्री का खुलासा करने का निर्देश दिया गया था।
क्या कहा कोर्ट ने?
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया कि किसी भी नागरिक की शैक्षणिक योग्यता या व्यक्तिगत रिकॉर्ड को सार्वजनिक करने का कानूनी दायित्व नहीं है, जब तक कि यह सार्वजनिक हित से सीधे तौर पर जुड़ा न हो। कोर्ट ने माना कि प्रधानमंत्री का पद संवैधानिक है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उनके व्यक्तिगत दस्तावेजों को आम जनता के लिए उपलब्ध कराया जाए।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की बेंच ने कहा:
“शैक्षणिक रिकॉर्ड व्यक्तिगत जानकारी के दायरे में आते हैं। इसे सार्वजनिक करना निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा।”

CIC का आदेश क्यों था विवादित?
मुख्य सूचना आयोग (CIC) ने पहले अपने आदेश में कहा था कि पीएम मोदी की डिग्री और शैक्षणिक रिकॉर्ड को सार्वजनिक किया जाए। यह मामला RTI एक्ट (सूचना का अधिकार कानून) के तहत उठाया गया था।
कई कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं ने RTI के जरिए प्रधानमंत्री की डिग्री की जानकारी मांगी थी। इस पर CIC ने माना था कि प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यता जानना नागरिकों का अधिकार है।
हालांकि, कोर्ट ने इस आदेश को अब निरस्त कर दिया है।
राजनीतिक मायने
यह मामला केवल एक कानूनी विवाद नहीं बल्कि राजनीतिक बहस का भी हिस्सा रहा है। विपक्षी दलों ने बार-बार प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री पर सवाल उठाए हैं और पारदर्शिता की मांग की है।
वहीं, भाजपा ने हमेशा यह कहा है कि विपक्ष का यह मुद्दा सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास है। पार्टी नेताओं का कहना है कि देश की जनता ने पीएम मोदी को उनके काम और नीतियों के आधार पर चुना है, न कि उनकी डिग्री के आधार पर।
निजता बनाम पारदर्शिता
यह फैसला एक बार फिर उस बहस को जन्म देता है कि एक सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति की निजता और जनता के जानने के अधिकार में कैसे संतुलन बनाया जाए।
RTI एक्ट का मकसद सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाना है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट कई बार यह साफ कर चुके हैं कि किसी की निजी जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता, जब तक कि यह जनहित में जरूरी न हो।
जनता की राय
सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं। एक वर्ग का कहना है कि प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की शैक्षणिक जानकारी सार्वजनिक होनी चाहिए। वहीं, दूसरी ओर कुछ लोग मानते हैं कि पीएम मोदी की डिग्री से ज्यादा महत्वपूर्ण उनके कार्य और नीतियाँ हैं।
आगे क्या?
इस फैसले के बाद पीएम मोदी की डिग्री पर चल रहा विवाद शायद कानूनी रूप से समाप्त हो गया हो, लेकिन राजनीतिक रूप से यह मुद्दा आगे भी उठता रहेगा। विपक्ष निश्चित तौर पर चुनावी साल में इसे दोबारा मुद्दा बना सकता है।
दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला निजता और पारदर्शिता के बीच संतुलन की ओर इशारा करता है। यह केवल पीएम मोदी की डिग्री का मामला नहीं है, बल्कि यह हर नागरिक के उस अधिकार को भी परिभाषित करता है जिसके तहत उसकी व्यक्तिगत जानकारी सार्वजनिक न की जाए।
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