बंद करो रूस से तेल खरीदना’ – ट्रंप का यूरोपीय नेताओं को अल्टीमेटम, भारत पर टैरिफ को लेकर घिरी फजीहत
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर वैश्विक सुर्खियों में हैं। यूरोपीय नेताओं के साथ हुई बातचीत में ट्रंप ने सीधा संदेश दिया है – “अब वक्त आ गया है कि यूरोप रूस से तेल खरीदना बंद करे।” यह बयान ऐसे समय आया है जब रूस-यूक्रेन युद्ध यूरोपीय ऊर्जा सुरक्षा को हिला चुका है।
लेकिन, ट्रंप के लिए मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं। भारत पर बढ़ाए गए टैरिफ को लेकर न केवल घरेलू मोर्चे पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी आलोचना हो रही है।
🛢️ यूरोपीय देशों से नाराज़गी – रूस से क्यों है ट्रंप की टकराहट?
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अमेरिका बार-बार चाहता है कि यूरोपीय देश ऊर्जा स्रोतों के लिए रूस पर निर्भर न रहें।
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रूस से आने वाला सस्ता कच्चा तेल यूरोप के लिए ‘किफायती’ है, लेकिन इससे मॉस्को को युद्ध जारी रखने के लिए पैसा भी मिलता है।
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ट्रंप ने कहा – “यदि पश्चिमी दुनिया लोकतंत्र का दावा करती है, तो उसे रूस से तेल-गैस खरीदकर अपने ही दुश्मनों को ताकतवर नहीं बनाना चाहिए।”
यानी ट्रंप अब कूटनीति के बजाय सीधे टकराव वाले अंदाज़ में संदेश दे रहे हैं।
🇮🇳 भारत पर टैरिफ का सवाल – क्यों पड़ रही है भारी फजीहत?
भारत के साथ अमेरिका के आर्थिक रिश्ते हमेशा उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। ट्रंप प्रशासन ने भारत के कई उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने का फैसला किया।
👉 लेकिन इस कदम से अमेरिकी उद्योग और खुद घरेलू उपभोक्ता भी नाराज़ दिख रहे हैं।
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अमेरिकी कंपनियां कह रही हैं कि भारत जैसे बड़े बाजार को नाराज़ करना मूर्खता होगी।
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भारत पर टैरिफ लगाने का असर ये हुआ कि भारतीय निर्यातकों ने अब यूरोप और एशिया की ओर रुख करना शुरू कर दिया।
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नतीजा – अमेरिकी बाज़ार में कीमतें बढ़ने लगीं और घरेलू उपभोक्ताओं पर सीधा बोझ पड़ा।
यानी ट्रंप का भारत-विरोधी टैरिफ दांव उल्टा पड़ता नजर आ रहा है।

🌍 चीन पर बढ़ता दबाव – ‘आर्थिक हथियार’ तैयार
यूरोप और भारत के मसले से अलग ट्रंप ने एक बार फिर चीन को घेरने की कोशिश की।
उनका कहना है कि चीन अपनी “अनफेयर ट्रेड पॉलिसी” से वैश्विक बाज़ार को कंट्रोल कर रहा है।
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अमेरिकी टेक कंपनियों पर चीनी दखल बढ़ रहा है।
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चीन के सस्ते उत्पाद अमेरिकी इंडस्ट्री को डुबो रहे हैं।
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ट्रंप कहते हैं कि अगर चीन ने नियम नहीं माने, तो अमेरिका “कड़े आर्थिक हथियार” इस्तेमाल करेगा।
यह आर्थिक हथियार क्या होंगे – नए टैरिफ, टेक बैन या सप्लाई चेन में बदलाव – ये देखना दिलचस्प होगा।
⚖️ राजनीतिक समीकरण और कूटनीति के संकेत
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यूरोप पर दबाव डालने के पीछे मकसद – रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करना।
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भारत पर टैरिफ बढ़ाने का असर – अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान।
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चीन पर बयानबाज़ी – 2024 के चुनावों को ध्यान में रखकर घरेलू राजनीति के लिए ‘कड़ा नेतृत्व’ दिखाना।
ट्रंप जानते हैं कि उनका सामान्य समर्थक वर्ग ‘मजबूत अमेरिका’ की छवि चाहता है।
🔮 आगे की राह – दुनिया किस ओर?
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यूरोप क्या सच में रूस से तेल खरीदना बंद करेगा?
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भारत पर लगाए टैरिफ कितने दिन तक टिकेंगे?
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क्या चीन और अमेरिका की ‘आर्थिक जंग’ और भड़क उठेगी?
इन सवालों के जवाब अगले कुछ महीनों में तय करेंगे कि वैश्विक राजनीति किस दिशा में बढ़ेगी।
ट्रंप इस समय तीन मोर्चों पर खेल रहे हैं—
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यूरोप को रूस-ऊर्जा से दूर करना,
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भारत पर टैरिफ से ‘सख़्त अमेरिका’ का संदेश देना,
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और चीन पर आर्थिक दबाव बढ़ाना।
लेकिन चुनौती यह है कि उनके हर कदम का असर वैश्विक व्यापार, अमेरिकी कंपनियों और सामान्य उपभोक्ताओं पर भी सीधा पड़ रहा है।
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