संजय कुमार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, गलत चुनावी डेटा शेयर करने के मामले में पुलिस केस पर लगी रोक
नई दिल्ली – सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (CSDS) के निदेशक संजय कुमार को आखिरकार सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। उन पर गलत चुनावी डेटा साझा करने का आरोप लगा था, जिसके बाद उनके खिलाफ महाराष्ट्र में पुलिस केस दर्ज किए गए थे। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर मुकदमों पर रोक लगा दी है।
क्या था पूरा मामला?
दरअसल, संजय कुमार ने हाल ही में महाराष्ट्र की वोटर लिस्ट से जुड़ा एक आंकड़ा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर साझा किया था। पोस्ट में दावा किया गया था कि राज्य की वोटर लिस्ट में भारी गड़बड़ी है और इसमें गलत तरीके से आंकड़े पेश किए गए हैं। यह पोस्ट वायरल होने लगी, जिसके बाद राजनीतिक हलकों और आम जनता में हलचल मच गई।
मामला गहराने पर राज्य पुलिस ने संजय कुमार के खिलाफ आईटी एक्ट और चुनाव से जुड़े प्रावधानों के तहत केस दर्ज कर लिया। हालांकि, संजय कुमार ने तुरंत अपनी गलती मानते हुए पोस्ट को डिलीट कर माफी भी मांग ली थी। उन्होंने साफ कहा था कि यह आंकड़ा उन्होंने “गलत स्रोत” से लिया और बिना क्रॉस चेक किए साझा कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
इस मामले में जब याचिका सुप्रीम कोर्ट पहुंची, तो कोर्ट ने साफ कहा कि किसी व्यक्ति की गलती को “आपराधिक रंग” नहीं दिया जा सकता। अदालत ने यह भी माना कि संजय कुमार ने खुद अपनी गलती स्वीकार की और सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगी।
न्यायमूर्ति संजय कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि –
“एक शैक्षणिक या शोध से जुड़े व्यक्ति से ऐसी गलती हो सकती है, लेकिन इसे अपराध मानकर सजा देना उचित नहीं होगा। जब व्यक्ति ने अपना पोस्ट वापस ले लिया और माफी भी मांग ली, तो इस स्तर पर पुलिस कार्रवाई पर रोक लगाई जाती है।”
इस फैसले से संजय कुमार को बड़ी राहत मिली है और उनके खिलाफ दर्ज केसों की सुनवाई पर रोक लगा दी गई है।
राजनीति और सोशल मीडिया का दबाव
यह मामला केवल एक डेटा एरर नहीं था बल्कि इसके राजनीतिक मायने भी थे। चुनावी साल में किसी भी तरह के आंकड़े या वोटर लिस्ट से जुड़ी जानकारी जनता की राय को प्रभावित कर सकती है। इसलिए विपक्षी दलों ने इसे तुरंत मुद्दा बना लिया।
सोशल मीडिया पर भी संजय कुमार के खिलाफ माहौल बनने लगा और कई नेताओं ने इसे “जानबूझकर फैलाई गई गलत जानकारी” करार दिया।
शोध जगत के लिए सबक
यह घटना शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों के लिए एक बड़ा सबक है कि सोशल मीडिया पर कोई भी आंकड़ा या डेटा साझा करने से पहले उसे प्रामाणिक स्रोतों से जांचना बेहद जरूरी है। क्योंकि एक छोटी सी चूक भी कानूनी विवाद और साख पर सवाल खड़ा कर सकती है।
संजय कुमार जैसे बड़े शोधकर्ता का नाम इस तरह के विवाद में आना अकादमिक जगत के लिए भी चिंता का विषय बना। हालांकि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन्हें राहत तो देता है, लेकिन यह भी याद दिलाता है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जिम्मेदारी और पारदर्शिता अनिवार्य है।
आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट ने केसों पर रोक तो लगा दी है, लेकिन अंतिम सुनवाई अभी बाकी है। कोर्ट ने साफ किया कि फिलहाल पुलिस जांच आगे नहीं बढ़ाई जाएगी और न ही कोई कठोर कार्रवाई होगी।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में संजय कुमार को पूर्ण रूप से बरी कर दिया जाएगा, क्योंकि उनकी मंशा गलत साबित नहीं हुई है और उन्होंने तुरंत माफी भी मांग ली थी।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल संजय कुमार के लिए राहत है, बल्कि यह एक मिसाल भी है कि गलती और अपराध में फर्क किया जाना चाहिए। चुनावी आंकड़ों के दौर में जहां हर जानकारी राजनीतिक रूप से संवेदनशील होती है, वहां शोधकर्ताओं और पत्रकारों को और ज्यादा सतर्क रहना होगा।
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