संभल कमेटी रिपोर्ट: सीएम योगी को सौंपी गई रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे, जिले की डेमोग्राफी में बड़ा बदलाव!
उत्तर प्रदेश का संभल जिला एक बार फिर सुर्खियों में है। बीते वर्ष हुए दंगों के बाद गठित की गई संभल जांच कमेटी ने आखिरकार अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप दी है। इस रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए हैं, वे न केवल प्रशासन को चौंकाने वाले हैं, बल्कि प्रदेश की सुरक्षा और सामाजिक संतुलन को लेकर गहरे सवाल भी खड़े करते हैं।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जिले की जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) तेजी से बदली है। हैरानी की बात यह है कि अब यहां हिंदू आबादी मात्र 15% के आसपास बची है। इस तथ्य ने प्रदेश सरकार को भी सतर्क कर दिया है क्योंकि डेमोग्राफिक बदलाव को लेकर लंबे समय से विभिन्न स्तरों पर चिंता जताई जा रही थी।
दंगों के बाद बनी थी जांच कमेटी
पिछले वर्ष संभल में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद राज्य सरकार ने एक विशेष जांच कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी को जिम्मेदारी दी गई थी कि वह दंगे के कारणों, उसमें शामिल ताकतों और जिले की जनसांख्यिकीय स्थिति का अध्ययन कर रिपोर्ट पेश करे। लगभग एक वर्ष की जांच और क्षेत्रीय सर्वे के बाद कमेटी ने गुरुवार को यह रिपोर्ट सीएम योगी आदित्यनाथ को सौंपी।
रिपोर्ट में क्या-क्या खुलासे हुए?
कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार—
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जनसंख्या संतुलन में भारी बदलाव: जिले में बीते एक दशक में हिंदू आबादी तेजी से घटी है और अब यह 15% के आसपास रह गई है।
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बाहरी तत्वों की भूमिका: दंगे के दौरान कई बाहरी संगठनों और असामाजिक तत्वों की संलिप्तता की पुष्टि हुई है।
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आर्थिक गतिविधियों पर असर: जिले के छोटे उद्योग, व्यापार और रोजगार के अवसरों पर सांप्रदायिक तनाव का प्रतिकूल असर पड़ा है।
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स्थानीय प्रशासन की लापरवाही: रिपोर्ट में माना गया कि समय रहते प्रभावी कदम न उठाने से हालात बिगड़े।
सीएम योगी की प्रतिक्रिया
रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ संकेत दिए हैं कि सरकार इस मामले में कड़े और ठोस कदम उठाएगी। सूत्रों के अनुसार, सरकार अब जिले में विशेष पुलिस बल और इंटेलिजेंस नेटवर्क को और मजबूत करने पर विचार कर रही है। साथ ही, प्रशासनिक स्तर पर भी बड़े बदलाव की संभावना जताई जा रही है।
योगी सरकार पहले भी जनसांख्यिकीय बदलाव और जनसंख्या नियंत्रण जैसे मुद्दों पर स्पष्ट रुख रख चुकी है। ऐसे में इस रिपोर्ट को गंभीरता से लिए जाने की पूरी संभावना है।
सामाजिक और राजनीतिक असर
संभल की यह रिपोर्ट न केवल प्रदेश की राजनीति को प्रभावित कर सकती है बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन सकती है। विपक्षी दल जहां इसे लेकर सरकार पर सवाल उठा सकते हैं, वहीं भाजपा इसे अपनी कानून-व्यवस्था और सुरक्षा की प्रतिबद्धता के तौर पर पेश करेगी।
सामाजिक स्तर पर भी यह रिपोर्ट बहस को जन्म देती है कि आखिर किस तरह एक जिले की डेमोग्राफी इतनी तेजी से बदल सकती है और इसका आने वाले वर्षों में क्या असर होगा।
संभल कमेटी की रिपोर्ट एक गंभीर चेतावनी है। यह केवल एक जिले का मामला नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश और देश के लिए एक सुरक्षा और सामाजिक संतुलन का सवाल है। अब सबकी नजरें योगी सरकार की अगली कार्रवाई पर होंगी।
संभल ज़िले में हुई हिंसक घटनाओं और उससे जुड़ी जांच को लेकर बनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप दी है। इस रिपोर्ट ने पूरे प्रदेश की राजनीति और सामाजिक परिदृश्य में हलचल मचा दी है। कमेटी ने न सिर्फ दंगों की जड़ तक पहुंचने की कोशिश की है, बल्कि डेमोग्राफी में आए बदलावों को भी रेखांकित किया है।
रिपोर्ट का बड़ा खुलासा
रिपोर्ट के मुताबिक, संभल ज़िले में पिछले कुछ वर्षों में जनसंख्या का संतुलन तेजी से बदल गया है। आंकड़ों के अनुसार, जिले में हिंदुओं की हिस्सेदारी घटकर मात्र 15% तक रह गई है, जबकि अन्य समुदायों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह बदलाव सिर्फ जनसंख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असर भी दिखा रहा है।
दंगों के कारण और प्रभाव
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि बीते वर्ष हुए दंगों के पीछे डेमोग्राफिक बदलाव ने भी अहम भूमिका निभाई। स्थानीय स्तर पर राजनीतिक प्रभाव, ज़मीन विवाद, और बाहरी फंडिंग जैसे कारकों ने स्थिति को और जटिल बना दिया।
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दंगों की शुरुआत छोटे-छोटे विवादों से हुई।
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हालात इतने बिगड़े कि प्रशासन को अतिरिक्त फोर्स बुलानी पड़ी।
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दंगों का असर जिले की सामाजिक एकजुटता और व्यापार पर भी पड़ा।
सीएम योगी को सौंपी रिपोर्ट
गुरुवार को कमेटी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को रिपोर्ट सौंपते हुए सुझाव दिए कि जिले में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। रिपोर्ट में प्रशासन को सख्ती बढ़ाने, अवैध निर्माण और बाहरी फंडिंग की जांच करने, और शिक्षा-संवाद के जरिए लोगों के बीच विश्वास कायम करने की सिफारिश की गई है।
राजनीतिक हलचल
इस रिपोर्ट के सामने आते ही राजनीतिक दलों में भी बयानबाजी तेज हो गई है। विपक्षी पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि सरकार इस रिपोर्ट का इस्तेमाल ध्रुवीकरण के लिए कर रही है, जबकि सत्तारूढ़ दल इसे ‘सच्चाई का आईना’ बता रहा है।
क्या होगा आगे?
अब सबकी नज़र सरकार के अगले कदम पर है। क्या प्रशासन सिफारिशों पर अमल करेगा? क्या डेमोग्राफिक बदलावों को संतुलित करने के लिए कोई ठोस नीति बनाई जाएगी? और सबसे अहम सवाल—क्या जिले में शांति और सौहार्द कायम रह पाएगा?
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