उत्तराखंड सरकार ने लिव-इन रिलेशनशिप को औपचारिक रूप से मान्यता देने और विनियमित करने के लिए एक कानूनी ढांचा तैयार किया है। इसका उद्देश्य लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों के लिए स्पष्ट कानूनी दिशानिर्देश और सुरक्षा स्थापित करना है। प्रस्तावित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक में लिव-इन जोड़ों और विवाह के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन सुविधा शुरू करने की प्रक्रिया चल रही है। विशेष रूप से, यह पहली बार है कि सरकार ने खुलासा किया है कि लिव-इन का पंजीकरण ऑनलाइन संभव होगा। लिव-इन के लिए यूसीसी प्रावधानों के तहत जोड़ों को पंजीकरण कराने और सरकार की जांच का मुद्दा इस साल लोकसभा चुनावों से पहले युवाओं के बीच एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय था।
समान नागरिक संहिता के तहत लिव इन जोड़ों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य
यूसीसी के प्रावधानों के अनुसार, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को एक निर्धारित समय सीमा के भीतर अपने विवाह को ऑनलाइन पंजीकृत कराना अनिवार्य होगा। एक महीने के भीतर अनुपालन न करने पर ₹10,000 का जुर्माना या तीन महीने तक की कैद हो सकती है, और लंबे समय तक अनुपालन न करने पर जुर्माना ₹25,000 या छह महीने की कैद तक हो सकता है। इसके अतिरिक्त, सरकार 18-21 वर्ष की आयु के व्यक्तियों के माता-पिता को उनके बच्चों की लिव-इन व्यवस्था के बारे में सूचित करने की योजना बना रही है, ताकि परिवारों के भीतर पारदर्शिता और संचार सुनिश्चित हो सके। इतना ही नहीं लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को कानूनी मान्यता मिलेगी यानी, वे “दंपति की वैध संतान होंगे”. इसके अलावा, “सभी बच्चों को विरासत (माता-पिता की संपत्ति सहित) में समान अधिकार होगा”. यूसीसी ड्राफ्ट में यह भी कहा गया है कि अपने लिव-इन पार्टनर द्वारा छोड़ी गई महिला भरण-पोषण का दावा कर सकती है.
बता दें कि उत्तराखंड विधानसभा ने 7 फरवरी 2024 को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पारित किया था, जिसका उद्देश्य अन्य मुद्दों के अलावा विवाह, रिश्तों और विरासत को नियंत्रित करने वाले धार्मिक व्यक्तिगत कानूनों को बदलना है। विधेयक में सभी समुदायों में विवाह के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित की गई है – महिलाओं के लिए 18 वर्ष, पुरुषों के लिए 21 वर्ष। कहा गया है कि इसमें लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य पंजीकरण और ऐसा न करने पर तीन से छह महीने की जेल की सजा का प्रावधान है।
