लोकसभा के नतीजे आ गए हैं NDA को बहुमत जरुर मिला है लेकिन उसके 400 पार वाले टारगेट को झटका जरुर लगा है। NDA के 400 वाले टारगेट के बीच जो राज्य रोड़ा बने उनमें उत्तर प्रदेश टॉप था। बीजेपी की अगुवाई में एनडीए ने यहां 80 की 80 सीटें जीतने का दावा किया था लेकिन नतीजे इसके विपरित आए और बीजेपी 33 और इसके सहयोगी दलों को 3 सीटें मिली. कुल मिलाजुलाकर 36 सीटों पर सिमट गई। सूबे में सबसे बड़ी पार्टी समाजवादी पार्टी बनकर उभरी। तो आइए जानते हैं वो कौन से कारक रहे जिनकी वजह से यूपी से बीजेपी को निराशा हाथ लगी?
गठबंधन के घटक दलों का वोट ट्रांसफर ना होना
यूपी में जातीय समीकरण साधने के लिए बीजेपी ने पूर्वांचल में ओपी राजभर की पार्टी सुभासपा, संजय निषाद की पार्टी निषाद पार्टी ,अपना दल और पश्चिमी यूपी में राष्ट्रीय लोक दल से गठबंधन किया। लेकिन इस गठबंधन से कोई फायदा नहीं हुआ। निषाद पार्टी और राजभर के प्रभाव वाली सीटों पर बीजेपी को करारी हार मिली। फतेहपुर, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर जैसी सीटों पर निषादों का खासा प्रभाव है लेकिन यहां निषाद वोट भाजपा को ट्रांसभर ना हुआ और नतीजा ये सीटें हार गई। वहीं गाजीपुर, घोसी, लालगंज, बलिया में राजभरों की अच्छी आबादी है वहां भी बीजेपी को हार मिली और तो और घोसी से तो राजभर के बेटे चुनाव लड़ रहे थे वो भी हार गए।
संविधान बदलने की चर्चा पड़ी भारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे ही 400 पार का नारा दिया, भाजपा के कुछ नेता दावा करने लगे कि 400 पार इसलिए चाहिए क्योंकि संविधान बदलना है। अयोध्या से बीजेपी प्रत्याशी लल्लू सिंह ने भी ये बयान दिया था। विपक्ष ने इसे भुनाया चुनाव प्रचार में दावा किया कि भाजपा इतनी ज्यादा सीटें इसलिए चाहती है ताकि वह संविधान बदल सके और आरक्षण खत्म कर सके। दलितों और ओबीसी के बीच यह बातें काफी तेजी से फैली और नतीजा वोटों के रूप में सामने आया। जिन वोटों ने 2014 और 2019 में बीजेपी की नैया पार लगाई 2024 में डूब गई।
नौकरी और पेपर लीक ने युवाओं को मोड़ा
आाबादी के लिहाज से यूपी देश का सबसे बड़ा राज्य है और युवा भी बहुच ज्यादा है। ऐसे में भाजपा सरकार पर लगातार ये आरोप लग रहे हैं कि वे नौकरी नहीं दे पा रहे हैं। पेपर लीक हो जाता है। हाल ही यूपी पुलिस का परीक्षा इसका उदाहरण है जब युवाओं को आंदोलन करना पड़ गया था। इलाहाबाद बनारस गोरखपुर जैसे शहरों में बहुत सारे युवा वर्षों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन अब उनकी उम्र निकल रही है। वे परीक्षा नहीं दे पा रहे हैं। युवाओं में यह एक बड़ा मुद्दा था। इसी वजह से जमीन पर भारी संख्या में युवा भाजपा से काफी नाराज दिखे। मतों में भी बात झलक कर आ रही है।
सपा और कांग्रेस के PDA फैक्टर ने किया कमाल
लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश ने PDA का नारा दिया। पीडीए यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक,अखिलेश अपनी रैलियों में भी अक्सर ये कहते दिखे कि पीडीए एकजुट होकर सपा को वोट देगा और बीजेपी को हराएगा। अखिलेश ये बात दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को समझाने में सफल भी रहें और नतीजा सामने है।
उम्मीदवारों का चयन और ओवरकॉन्फिडेंस
उत्तर प्रदेश में बीजेपी के प्रति मोहभंग के सबसे बड़े कारण में से एक प्रत्याशियों से नाराजगी है। लगभग हर सीट पर यही स्थिति रही कि पार्टी के प्रत्याशी के विरोध की स्थिति रही। लोग यही कहते नजर आए कि आखिर कब तक मोदी जी के नाम पर ही कैंडिडेट्स को जीत दिलाते रहेंगे। बीजेपी के अधिकांश सांसदों और स्थानीय नेताओं के ख़िलाफ़ बहुत ग़ुस्सा है।
