जब भी टॉप क्लास एजुकेशन की बात होती है तो ब्रिटेन और अमेरिका के यूनिवर्सिटीज का नाम सबसे पहले आता हैभारत के छात्र हावर्ड, कैंब्रिज,MIT जैसे विश्वविद्यालयों में पढ़ने जाते हैं, लेकिन एक समय ऐसा था, जब पूरी दुनिया से छात्र ज्ञान पाने भारत आते थे। एक ऐसा विश्वविद्यालय था जहां ज्ञान का अथाह भंडार था, विज्ञान के सारे प्रयोग थे, तकनीक थी, वो विश्वविद्यालय था नालंदा विश्वविद्यालय। एक समय 90 लाख किताबों का घर था और 1500 से ज्यादा आचार्य थे। दुनियाभर से करीब 10 हजार छात्र नालंदा में पढ़ने आते थे। आज एक बार फिर नालंदा विश्वविद्यालय चर्चा में है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज यानी 19 जून को नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन किया है तो आइए जानते हैं नालंदा विश्वविद्यालय के समृद्ध अतीत, उसके पतन की कहानी जिसे 12 वीं शताब्दी में तुर्क-अफगान सैन्य जनरल बख्तियार खिलजी ने नष्ट कर दिया था।
दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था नालंदा विश्वविद्यालय
दुनिया के सबसे महान शिक्षा केंद्रों में से एक रहा नालंदा विश्वविद्यालय आज लाल ईंटों का खंडहर बनकर रह गया है। इसे दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है। इसकी स्थापना पांचवीं शताब्दी में गुप्त वंश के सम्राट कुमार गुप्त ने कराई थी बाद में नालंदा विश्वविद्यालय सम्राट हर्षवर्धन और पाल वंश के शासकों के संरक्षण में यह विश्वविद्यालय संचालित होता रहा।
1500 आचार्य, 10 हजार विद्यार्थी, 90 लाख से ज्यादा पुस्तकें
नालंदा प्राचीन और मध्यकालीन मगध काल में बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा शिक्षण केंद्र था। नालंदा विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार स्टूडेंट्स पढ़ते थे, जिनके लिए 1500 अध्यापक हुआ करते थे। अधिकतर स्टूडेंट्स एशियाई देशों जैसे चीन, कोरिया , जापान, भूटान से आने वाले बौद्ध भिक्षु थे। ये छात्र मेडिसिन, तर्कशास्त्र, गणित और बौद्ध सिद्धांतों के बारे में अध्ययन करते थे। स्थापना के 800 से अधिक वर्षों तक यहां विश्वविद्यालय संचालित होता रहा।
छठी शताब्दी में आर्यभट्ट ने किया था नालंदा विश्वविद्यालय का नेतृत्व
ऐसा माना जाता है कि छठी शताब्दी में, भारतीय गणित के जनक कहे जाने वाले आर्यभट्ट ने इस विश्वविद्यालय का नेतृत्व किया था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने 7वीं शताब्दी में नालंदा की यात्रा की और यहां अध्ययन किया। बाद में त्सांग ने इस विश्वविद्यालय में एक विशेषज्ञ प्रोफेसर के रूप में काम किया। यहीं उन्हें मोक्षदेव का भारतीय नाम मिला।
तीन महीने तक जलती रही हस्तलिखित पांडुलिपियां
नालंदा पुस्तकालय में 90 लाख से ज्यादा हस्तलिखित पांडुलिपियां थीं। ये बौद्ध ज्ञान का दुनिया का सबसे समृद्ध भंडार था। यह परिसर इतना विशाल था कि हमलावरों द्वारा लगाई गई आग तीन महीने तक जलती रही। खुदाई में मिला 23 हेक्टेयर में फैला हुआ हिस्सा जो आज मौजूद है, उसे यूनिवर्सिटी के वास्तविक कैंपस का बस एक छोटा सा हिस्सा माना जाता है।
तीन बार आक्रमणकारियों के निशाने पर आया, खिलजी ने जलाकर ध्वस्त किया
1193 ईस्वी में तुर्की शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में आक्रमणकारियों की सैन्य टुकड़ी ने विश्वविद्यालय को जलाकर खत्म कर दिया। स्कॉलर बताते हैं कि जिस हमले में नालंदा यूनिवर्सिटी तबाह हुई, वो इस विश्वविद्यालय पर पहला हमला नहीं था। उससे पहले 5वीं शताब्दी में मिहिरकुल के नेतृत्व में हूणों ने इस पर हमला किया था। दूसरी बार फिर 8वीं शताब्दी में बंगाल के गौड़ राजा के आक्रमण से इसे गंभीर नुकसान हुआ था।
इस महान विश्वविद्यालय की कई गाथाएं मौजूद हैं जो इसकी महानता को दर्शाती हैं। 00 साल के लंबे इंतजार के बाद फिर इसे पुराने स्वरूप में लौटाने की कोशिश हुईं और सरकारों ने इस पर काम किया। 2007 से तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की पहल के बाद इसके निर्माण की रूपरेखा बनाई गई थी और आज पीएम मोदी ने 19 जून को नए परिसर का उद्घाटन किया।
