देश में अंग्रेजों के जमाने से चल रहे कानूनों की जगह 3 नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1 जुलाई से लागू हो गए हैं। इन्हें IPC (1860), CrPC (1973) और एविडेंस एक्ट (1872) की जगह लाया गया है। कानूनों के लागू होने के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने मीडिया को इन कानूनों की जानकारी दी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि देश के आजाद होने के 77 साल बाद भारत की न्याय प्रणाली पूरी तरह से स्वदेशी हो गई है। उन्होंने तीनों नए कानूनों को दंड की जगह न्याय देने वाला बताया। उन्होंने कहा कि कानून बनाने से पहले इसके हर पहलू पर चार साल तक विस्तार से अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा की गई। आजादी के बाद से अब तक किसी भी कानून पर इतनी लंबी चर्चा पहले कभी नहीं हुई। नए कानूनों में पहली प्राथमिकता महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को दी गई है।
“न्याय मिलने तक 3 साल से अधिक वक्त का समय नहीं लगेगा”
अमित शाह ने बताया कि नए कानून के तहत पहला मामला रात को 12 बजकर 10 मिनट पर ग्लावियर में चोरी के लिए दर्ज किया गया था। उन्होंने कहा कि यह झूठ है कि पहला मामला स्ट्रीट वेंडर के खिलाफ दर्ज किया गया है। उन्होंने कहा, तीनों कानूनों के एक बार पूरी तरह से क्रियान्वित हो जाने के बाद एफआईआर दर्ज किए जाने से लेकर सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिलने तक 3 साल से अधिक वक्त का समय नहीं लगेगा और मुझे इस पर भरोसा है। शाह ने बताया कि 15 अगस्त तक केंद्र शासित प्रदेसों में भी इसे पूरी तरह से लागू करने का लक्ष्य है। उन्होंने बताया कि इससे अपराध में भी 90 फीसदी तक रोक लग सकेगी क्योंकि बार-बार अपराध करने वालों पर ज्यादा सजा का प्रावधान किया गया है।
जिस राज्य की भाषा उसी में चलेगा केस-शाह
इन कानूनों में ऐसा प्रावधान किया गया है कि अगले 50 साल में भी आने वाली तकनीक भी इसमें समाहित हो सकें। गृह मंत्री ने कहा कि देश के अलग-अलग राज्यों में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं को देखते हुए तीनों कानून देश की 8वीं अनुसूची की सभी भाषाओं में उपलब्ध होंगे। केस भी उन्हीं भाषाओं में चलेंगे। इसमें केवल हिंदी या अंग्रेजी भाषा नहीं रखी गई है। नए कानूनों में आज के समय के हिसाब से धाराएं जोड़ी गई हैं। नए कानूनों में अंग्रेजों के राजद्रोह कानून को जड़ से समाप्त कर दिया गया है। कुछ लोग ऐसा भ्रम फैला रहे हैं कि नए कानूनों में रिमांड का समय बढ़ा दिया गया है। यह सच नहीं है। नए कानूनों के तहत भी रिमांड का समय पहले की तरह ही 15 दिन का है।
दस्तावेजों में डिजिटल रिकॉर्ड्स भी शामिल
इन कानूनों में अत्याधुनिकतम तकनीकों को शामिल किया गया है। दस्तावेजों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल और मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है। सरकार का कहना है कि इससे अदालतों में लगने वाले कागजों के अंबार से मुक्ति मिलेगी।
दोष सिद्धि के प्रमाण के लिए फॉरेंसिक साइंस का अधिकतम इस्तेमाल
केंद्रीय गृह मंत्री ने सदन में कहा कि था आजादी के 75 सालों के बाद भी हमारा दोष सिद्धि का प्रमाण बहुत कम है, इसीलिए फॉरेंसिक साइंस को हमने बढ़ावा देने का काम किया है। सरकार ने नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी बनाने का निर्णय लिया था। तीन साल के बाद हर साल 33 हजार फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स और साइंटिस्ट्स देश को मिलेंगे। इस कानून में हमने लक्ष्य रखा है कि दोष सिद्धि के प्रमाण को 90 प्रतिशत से ऊपर लेकर जाना है। इसके लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान किया गया है कि सात वर्ष या इससे अधिक सजा वाले अपराधों के क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम का दौरा आवश्यक किया गया है। इसके माध्यम से पुलिस के पास एक वैज्ञानिक साक्ष्य होगा जिसके बाद कोर्ट में दोषियों के बरी होने की संभावना बहुत कम हो जाएगी।
