देश में 150 साल पुराने अंग्रेजों के जमाने से चल रहे तीन आपराधिक कानून 1 जुलाई से बदल गए हैं। दिसंबर 2023 में संसद द्वारा पारित तीन कानून अगले महीने से पूरे देश में प्रभावी हो जाएंगे। ये तीनों नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम कहे जाएंगे, जो भारतीय दंड संहिता (1860), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (1898) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) का स्थान लेंगे तो आइए जानते हैं कि ये नए क्रिमिनल लॉ में क्या खास है और कैसे ये भारतीय न्याय प्रणाली को और बेहतर बनाएगा
पुराने मामलों पर नए कानूनों का असर नहीं
1 जुलाई से पहले दर्ज हुए मामलों में नए कानून का असर नहीं होगा। इसका मतलब है कि जो केस 1 जुलाई 2024 से पहले दर्ज हुए हैं, उनकी जांच और ट्रायल पुराने कानून के हिसाब से ही होगी लेकिन, 1 जुलाई से नए कानून के तहत ही एफआईआर दर्ज हो रही है, और इसके अनुसार ही जांच और ट्रायल भी पूरे होंगे। BNSS में अब कुल 531 धाराएं हैं। इसके 177 प्रावधानों में संशोधन किया गया है, 14 धाराओं को हटाया गया है, 9 नई धाराएं और 39 उप धाराएं जोड़ी गई हैं, पहले CrPC में 484 धाराएं थीं. ऐसेही भारतीय न्याय संहिता में अब कुल 357 धाराएं हैं, पहले आईपीसी में 511 धाराएं थीं।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में अब कुल 170 धाराएं शामिल
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में अब कुल 170 धाराएं हैं। नए कानून में 6 धाराओं को हटाया गया है, 2 नई धाराएं और 6 उप धाराएं जोड़ी गई हैं। नए कानून में ऑडियो-वीडियो यानी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पर जोर दिया गया है और फॉरेंसिक जांच को भी अहमियत दी गई है। कोई भी नागरिक अब कहीं भी जीरो एफआईआर दर्ज करा सकेगा। जांच के लिए मामला संबंधित थाने में भेजा जाएगा। अगर जीरो एफआईआर ऐसे अपराध से जुड़ी है, जिसमें तीन से सात साल तक सजा का प्रावधान है, तो फॉरेंसिक टीम से साक्ष्यों की जांच करवानी होगी।
हत्या, लूट या रेप जैसी गंभीर धाराओं में भी ई-FIR
अब ई-सूचना से भी एफआईआर दर्ज हो सकेगी। हत्या, लूट या रेप जैसी गंभीर धाराओं में भी ई-एफआईआर हो सकेगी। वॉइस रिकॉर्डिंग से भी पुलिस को सूचना दी जा सकेगी। ई-एफआईआर के मामले में फरियादी को तीन दिन के भीतर थाने पहुंचकर एफआईआर की कॉपी पर साइन करना जरूरी होगा। ये नए बदलाव भारतीय साक्ष्य अधिनियम को और भी मजबूत और प्रभावी बनाएंगे।
सुनवाई पूरी होने के 30 दिनों के भीतर फैसला देना होगा
नए कानूनों के अनुसार फरियादी को एफआईआर और बयान से जुड़े दस्तावेज दिए जाने का प्रावधान किया गया है। फरियादी चाहे तो पुलिस द्वारा आरोपी से हुई पूछताछ के बिंदु भी ले सकता है। एफआईआर के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करना जरूरी होगा। चार्जशीट दाखिल होने के 60 दिनों के भीतर कोर्ट को आरोप तय करने होंगे। मामले की सुनवाई पूरी होने के 30 दिनों के भीतर जजमेंट यानी फैसला देना होगा। जजमेंट दिए जाने के बाद 7 दिनों के भीतर उसकी कॉपी मुहैया करानी होगी। पुलिस को हिरासत में लिए गए शख्स के बारे में उसके परिवार को लिखित में बताना होगा। ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों माध्यमों से सूचना देनी होगी।
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों में सख्त सजा
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए BNS में कुल 36 धाराओं में प्रावधान किया गया है। रेप का केस धारा 63 के तहत दर्ज होगा। धारा 64 में अपराधी को अधिकतम आजीवन कारावास और न्यूनतम 10 वर्ष की सजा का प्रावधान है। धारा 65 के तहत 16 साल से कम आयु की पीड़िता से दुष्कर्म करने पर 20 साल का कठोर कारावास, उम्रकैद और जुर्माने का प्रावधान है। गैंगरेप में अगर पीड़िता वयस्क है तो अपराधी को आजीवन कारावास का प्रावधान है। 12 साल से कम उम्र की पीड़िता के साथ रेप पर अपराधी को न्यूनतम 20 साल की सजा, आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान है। शादी का झांसा देकर संबंध बनाने वाले अपराध को रेप से अलग माना गया है। पीड़ित को उसके केस से जुड़े हर अपडेट की जानकारी हर स्तर पर उसके मोबाइल नंबर पर एसएमएस के जरिए दी जाएगी। अपडेट देने की समय-सीमा 90 दिन निर्धारित की गई है। ये बदलाव महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को और भी मजबूत बनाएंगे।
इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी कागजी रिकॉर्ड की तरह कोर्ट में मान्य
नए क्रिमिनल लॉ के मुताबिक अब राज्य सरकारें राजनीतिक केस, जैसे पार्टी वर्कर्स के धरना-प्रदर्शन और आंदोलन, को एकतरफा बंद नहीं कर सकेंगी। यदि फरियादी आम नागरिक है तो उसकी मंजूरी लेनी होगी। गवाहों की सुरक्षा के लिए भी प्रावधान किया गया है। अब तमाम इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी कागजी रिकॉर्ड की तरह कोर्ट में मान्य होंगे।
मॉब लिंचिंग भी अब अपराध के दायरे में आएगा
मॉब लिंचिंग भी अब अपराध के दायरे में आ गया है। शरीर पर चोट पहुंचाने वाले अपराधों को धारा 100-146 तक बताया गया है। हत्या के मामले में धारा 103 के तहत केस दर्ज होगा। धारा 111 में संगठित अपराध और धारा 113 में टेरर एक्ट बताया गया है। मॉब लिंचिंग के मामले में 7 साल की कैद, उम्रकैद या फांसी की सजा का प्रावधान है। चुनावी अपराधों को धारा 169-177 तक रखा गया है। संपत्ति को नुकसान, चोरी, लूट और डकैती के मामले को धारा 303-334 तक रखा गया है। मानहानि का जिक्र धारा 356 में किया गया है और दहेज हत्या धारा 79 में और दहेज प्रताड़ना धारा 84 में बताई गई है।
