यूपी बीजेपी में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक हल-चल तेज है। मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, संगठन मंत्री सबके बदलने की चर्चा जोरों पर है। खबर ये भी है कि हाईकमान कभी भी कोई बड़ा फैसला कर सकता है। दरअसल लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी से कहीं ज़्यादा लोकसभा सीटें सपा के पाले में आई और तो और कई अहम सीटों पर बीजेपी को हार का मुँह देखना पड़ा। अब उत्तर प्रदेश में बीजेपी के इस प्रदर्शन को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। लेकिन जो सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है वो ये कि इसका योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक करियर पर क्या असर पड़ेगा।
यूपी की हार का जिम्मेदार कौन?
रिपोर्टस के मुताबिक कई लोग यूपी में बीजेपी की हार का जिम्मेदार केंद्र को ठहरा रहे हैं क्योंकि 2024 लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले तक ख़ासतौर पर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारी BJP भारी बहुमत हासिल की। कहीं ना कहीं योगी को भविष्य के राष्ट्रीय नेता के तौर पर देखा जाने लगा था। मगर सवाल ये उठता है कि विधानसभा में इतना अच्छा प्रदर्शन के बाद भी लोकसभा में हुए भारी नुक़सान का ख़ामियाज़ा कहीं योगी आदित्यनाथ को नहीं उठाना पड़े। हालांकि ये पहली बार नहीं जब योगी आदित्यनाथ से कुर्सी खाली करवाने की चर्चा तेज हो। इससे पहले भी योगी को हटाने की बात सामने आई थी।
2021 में हुई थी योगी को हटाने की कोशिश लेकिन बच गई योगी की कुर्सी
रिपोर्टस के मुताबिक 2022 विधानसभा चुनाव से पहले एक समय आया जब केंद्र ने क़रीब-क़रीब उन्हें हटाने का मन बना लिया था लेकिन योगी आदित्यनाथ इसे रोकने में कामयाब हो गए। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक “ये लगभग तय हो गया था कि योगी को हटाया जा रहा है। विधानसभा चुनाव में सिर्फ़ नौ महीने बचे थे। उप-मुख्यमंत्री मौर्य और योगी आदित्यनाथ के बीच टकराव की ख़बरें लगातार आ रही थीं लेकिन तभी आरएसएस नेताओं के एंट्री के बाद योगी अचानक मौर्य के घर पहुंचे। उस समय तक योगी की लोकप्रियता पार्टी से भी ऊपर पहुंच चुकी थी और उनको दूसरे राज्यों से भी प्रचार करने के लिए बुलाया जा रहा था। आकलन के बाद पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को लगा कि योगी को हटाने का ये सही समय नहीं है। फिर PM मोदी और योगी की लखनऊ में मुलाक़ात हुई। योगी ने मोदी के साथ अपनी एक तस्वीर ट्वीट की जिसमें पीएम का हाथ उनके कंधे पर है और उन्होंने लिखा, ‘हम निकल पड़े हैं प्रण करके, अपना तन मन अर्पण करके, ज़िद है एक सूर्य उगाना है, अंबर से ऊपर जाना है। ये ट्वीट इस बात को प्रूभ कर दिया की चुनाव बीजेपी योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर लड़ रही थी, यानी जीत के बाद भी मुख्यमंत्री योगी ही बनेंगे उसके बाद 2022 का चुनाव योगी के नेतृत्व में लड़ा गया जिसमें बीजेपी की बंपर जीत हुई।
लोकसभा चुनाव के बाद उठी थी योगी को हटाने की चर्चा
राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चाएँ तेज़ होने लगीं कि केंद्रीय नेतृत्व और योगी आदित्यनाथ के रिश्तों की तल्ख़ी एक बार फिर उभर रही है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि योगी आदित्यनाथ की भूमिका की समीक्षा तभी की जा सकती है जब उनके पास कोई ज़िम्मेदारी होती। इस लोकसभा चुनाव को पूरी तरह से बीजेपी की आलाकमान कंट्रोल कर रही थी। चुनाव की पूरी बागडोर अमित शाह के हाथ में थी। सारे टिकट भी उन्हीं की मर्ज़ी से दिए गए, एक एक चुनाव क्षेत्र का प्रबंधन अमित शाह ख़ुद कर रहे थे और साथ ही ये भी माना जाता है कि यूपी में योगी फैक्टर बहुत मायने रखती है लेकिन लोकसभा चुनाव में कहीं ना कहीं योगी साइड लाइन की खबरें लगातार चल रही थी। रिपोर्टस के मुताबिक लोकसभा चुनाव में योगी को ज़िम्मेदारी दी गई थी उसका उन्होंने पूरा पालन किया इसलिए उनको इस हार का ज़िम्मेदार ठहराया ही नहीं जा सकता। अगर कोई योगी पर इस हार की ज़िम्मेदारी डालने की कोशिश कर रहा है तो वो साज़िशन ही है, ऐसा कई राजनीतिश विशेष्ज्ञ का कहना है।
कैसे पूरा होगा मिशन- 2027?
केंद्र में सरकार बनाने के बावजूद उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम को बीजेपी नेतृत्व के लिए पचाना मुश्किल हो गया। ख़ासतौर से तब जब यूपी से सटे हुए राज्य जैसे उत्तराखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और दिल्ली में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया। 2019 के संसदीय चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में ज़बरदस्त सफलता के बाद कुछ हल्कों में योगी आदित्यनाथ के लिए राष्ट्रीय भूमिका की संभावनाओं पर मंथन होने लगा था और उन्हें अगली पीढ़ी के बीजेपी नेता के तौर पर देखा जाने लगा था लेकिन बीजेपी फिलहाल 2027 का टास्क पहले पूरा करना है ऐसे में योगी का यूपी में रहना है बेहद जरुरी है। लेकिन बीजेपी केपी मौर्य को भी नाराज नहीं कर सकती। ऐसे में देखना ये दिलचस्प हो गया है कि बीजेपी मौर्य और योगी को कैसे मैनेज करती है और आगे की रणनीति क्या होती है।
