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What is Kanwad Yatra: आखिर क्यों होती है कांवड़ यात्रा, कैसे हुई इस यात्रा की शुरुआत?

सावन का माहिना शुरु हो गया है और देश में कांवड़ियो की यात्रा जारी है। भोले के भक्त गंगाजल लेकर भोले का जलाभिषेक करने देश के शिवालयों में हर हर महादेव , ,बम -बम भोले का नारा लगाते हुए पहुंच भी रहे हैं। ऐसे में ये जानना जरुरी है कि आखिर कांवड़ यात्रा कैसे और क्यों शुरु हुई और इसका इतिहास क्या हैं?

कांवड़ यात्रा की पौराणिक यात्रा

दरअसल, शिव पुराण के मुताबिक सावन के महीने में ही समुद्र मंथन हुआ था। मंथन के दौरान चौदह प्रकार के माणिक निकलने के साथ ही हलाहल यानी विष भी निकला। इस जहरीले विष से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने विष पी लिया। भगवान शिव ने ये विष गले में जमा कर लिया, जिस वजह से उनके गले में तेज जलन होने लगी। तब विष के प्रभावों को दूर करने के लिए भगवान शिव पर पवित्र नदियों का जल चढ़ाया गया था। ताकि विष के प्रभाव को जल्दी से जल्दी कम किया जा सके। सभी देवता मिलकर गंगाजल से जल लेकर आए और भगवान शिव पर अर्पित कर दिया। मान्यता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो गई थी।

किसने की थी पहली कांवड़ यात्रा?

अब बात आती है कि सबसे पहले कांवड़ यात्रा शुरु किसने की…ऐसे में पौराणिक कथाओं में कई नाम हैं। जिनमें परशुराम, श्रवण कुमार के साथ-साथ प्रभु श्रीराम और रावण के नाम शामिल हैं। कहा जाता है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तरप्रदेश के बागपत के पास बना पूरा महादेव का जलाभिषेक किया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार परशुराम गढ़मुक्तेश्वर से कांवड़ में गंगा जल लेकर आए थे और फिर प्राचीन शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। वहीं कथा ये भी है कि त्रेता युग में सबसे पहले श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा की थी। श्रवण कुमार के माता पिता ने तीर्थ यात्रा के दौरान हरिद्वार में गंगा स्नान की इच्छा जताई थी। उनकी इच्छा पूरी करने के लिए श्रवण कुमार अपने माता पिता को कांवड़ में बैठा कर हरिद्वार में गंगा स्नान कराया था।

भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सबसे उत्तम है कांवड़ यात्रा

कांवड़ यात्रा को भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने का एक सबसे शुभ और उत्तम मानी गई है। धार्मिक मान्यता है कि सावन के महीने में कांवड़ उठाने वाले भक्त के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और कांवड़ के जल से शिवलिंग का अभिषेक करने पर सालभर भोलेनाथ की कृपा बनी रहती है। साथ ही कष्ट, दोष, और कंगाली से छुटकारा मिलता है। इस कांवड़ यात्रा करने वाले शिव भक्तों को कांवड़िया कहा जाता है। कांवड़ यात्रा पर जाने वाले भक्तों को इस यात्रा के सख्त नियमों का पालन करना पड़ता है। इस दौरान भक्तों को पैदल ही पूरी यात्रा करनी पड़ती है. साथ ही यात्रा के दौरान भक्तों को तामसिक भोजन से दूर रहकर सिर्फ सात्विक भोजन ही करना होता है।

 

Mayank Dwivedi
Author: Mayank Dwivedi

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