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1947 आजादी के 5 किस्से: तीन रियासतों का सरदार पटेल ने भारत में विलय कराया, जूनागढ़ के लिए बना था ये प्लान

200 सालों तक अंग्रेजी हुकूमत के पिंजरे में कैद रहने और कठिन संघर्षों के बाद 15 अगस्त 1947 को हम आजाद हुए। आजादी के लिए हमारे वीरों ने अपनी कुर्नबानियां दी। द न्यूज व्यूज इन्ही कुर्बानियों को याद कर रहा है। आजादी के किस्सों को याद कर रहा है। इसी सीरीज में आज हम लेकर आए हैं आजादी के समय के 5 और किस्से  तो चलिये जानते हैं इन किस्सों के बारे में

देश के आजाद होने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने अपनी दूरदृष्टि और समझ से जो पंचवर्षीय योजनाएं बनाईं। उनसे देश को आज भी लाभ मिल रहा है। पहली पंचवर्षीय योजना 1951 से 1956 तक लागू हुई। शुरुआत में लोगों के मन में इस योजना के सफल होने को लेकर संदेह था। लेकिन 1956 में पहली पंचवर्षीय योजना के नतीजों ने आशंकाएं कम कर दी। इस योजना के दौरान विकास दर 3.6 फीसद दर्ज की गई। इसके अलावा प्रति व्यक्ति आय सहित दूसरे क्षेत्रों में भी बढ़ोतरी हुई। पहली पंचवर्षीय योजना कृषि क्षेत्र को ध्यान में रखकर बनाई गई तो दूसरी में औद्योगिक क्षेत्रों पर ध्यान दिया गया।


15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तब तक तीन रियासतें ऐसी थी। जिनका भारत में विलय नहीं हुआ था। ये रियासतें थी जूनागढ़,हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर। बंटवारे के वक्त देश में जैसा माहौल था उसमें तीनों रियासतों को सिर्फ ताकत से भारत में नहीं मिलाया जा सकता था। एक कुशल राजनेता की तरह सरदार पटेल ने साम दाम दंड भेद की नीति अपनाकर अद्भूत तरीके से इन रियासतों का भारत में विलय करवाया।


भारतीय सेना के हाथों जूनागढ़ रियासत को घेरने की खबर सुनकर वहां के नवाब पाकिस्तान रवाना हो गए और पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी। पाकिस्तान में शामिल होने के लिए जूनागढ़ के वेरावल में बंदरगाह बनाने और 25 हजार सैनिकों का ठिकाना बनाने की तैयारी थी। जानकारी मिलते ही सरदार पटेल ने जूनागढ़ की सीमाओं पर फौज की नाकेबंदी का आदेश दे दिया। नवाब विशेष विमान से पत्नी और बच्चों के बिना ही कराची रवाना हो गए। 7 नवंबर 1947 को जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया है।

हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली बहादुर ने 12 जून 1947 को ही आजाद देश बनाने की घोषणा कर दी थी। यहां तक कि अपनी निजी सेना तक बना ली थी। जनता निजाम के फैसले के खिलाफ भी और लगातार आंदोलन कर रही थी। इस बीच सरदार पटेल ने हैदराबाद पर सैनिक कार्रवाई का फैसला लिया और 13 सितंबर 1948 को ऑपरेशन पोलो के नाम से कार्रवाई शुरू कर दी गई। बाद में निजाम ने हथियार डाल दिए और भारत में विलय के लिए राज़ी हो गए इस तरह ऑपरेशन पोलो के आगे निजाम को झुकना पड़ा था।

26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह को जब ये खबरें मिलने लगी कि पाकिस्तान समर्थित कबायलियों ने बड़े पैमाने पर हमला कर दिया। वो श्रीनगर की ओर बढ़ रहे थे। तब महाराजा ने आनन-फानन में अपने राज्य की भारत में विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। दरअसल कश्मीर पर पाकिस्तान की शुरू से ही नजर थी। 22 अक्टूबर 1947 क़बायलियों और पाकिस्तानियों ने कश्मीर पर हमला कर दिया। पाकिस्तान की नई सरकार ने उन्हें हथियार दिए। ये कबायली बारामुला तक आ पहुंचे। ऐसी स्थिति में हरिसिंह पर दबाव बढ़ने लगा कि वह कश्मीर के विलय पर कोई फैसला लें। 26 अक्तूबर 1947 को हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर के विलय के कागजात पर हस्ताक्षर कर दिया।

Mayank Dwivedi
Author: Mayank Dwivedi

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