दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारतीय अर्थव्यवस्था ने आजादी के बाद से कई बड़े बदलाव किए हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था का खस्ताहाल से आर्थिक महाशक्ति बनने का सफर आसान नहीं रहा है। साल दर साल, नागरिकों और सरकार के अथक प्रयासों ने आज के भारत का निर्माण किया है। आइए जानते हैं आजादी के बाद के इन प्रयासों के बारे में
पीवी नरसिंहराव के बाद देश की कमान संभालने वाले अलट बिहारी वाजपेयी बतौर राजनेता हर मुमकिन उचाई तक पहुंचे। प्रधानमंत्री के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा करने वाले पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे। अटल सरकार ने 11 और 13 मई 1998 को पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट करके भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया। इसके बाद पश्चिमी देशों ने भारत पर कई प्रतिबंध लगाए लेकिन वाजपेई सरकार ने सबका दृढ़ता पूर्वक सामना करते हुए आर्थिक विकास की बुलंदियों को हासिल किया
प्रधानमंत्री के तौर पर वाजपेई के जिस काम को सबसे ज्यादा अहम माना जा सकता है वह सड़कों के माध्यम से भारत को जोड़ने की योजना है। उन्होंने चेन्नई ,कोलकाता, दिल्ली और मुंबई को जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना लागू की साथी ग्रामीण अंचलों के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना लागू की उनके इस फैसले ने देश के आर्थिक विकास को जबरदस्त रफ्तार दी।
वाजपेई के प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान देश में निजीकरण को उस रफ्तार तक बढ़ाया गया जहां से वापसी की कोई गुंजाइश नहीं बची वाजपेई ने 1999 में अपनी सरकार में विनिवेश मंत्रालय के तौर पर एक खास मंत्रालय का भी गठन किया था। वाजपेई ने बीमा कंपनियों में विदेशी निवेश की सीमा को 26 फीसदी तक किया था जिसे 2015 में नरेंद्र मोदी सरकार ने बढ़ाकर 49 वृद्धि तक कर दिया सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन की स्कीम को वाजपेई सरकार ने ही खत्म किया था।
भारत में संचार क्रांति का जनक भले ही राजीव गांधी को माना जाता हो लेकिन उसे आम लोगों तक पहुंचाने का काम वाजपेई सरकार ने ही किया था। 1999 में वर्ष पहले भारत संचार निगम लिमिटेड के एकाधिकार को खत्म करते हुए नई टेलिकॉम नीति लागू की। रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल के जरिए लोगों को सस्ती दरों पर फोन कॉल्स करने का फायदा मिला और बाद में सस्ते मोबाइल फोन का दौर भी शुरू हो गया।
16 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का अभियान वाजपेई के कार्यकाल में ही शुरू किया गया था। 2000 से 2001 में उन्होंने यह स्कीम लागू की थी। जिसके चलते हैं बीच में पढ़ाई छोड़ देने वाले बच्चों की संख्या में कमी दर्ज की गई। 2000 में जहां 40 फीसदी बच्चे ड्रॉप आउट होते थे। उनकी संख्या 2005 आते-आते 10 फिसदी के आसपास आ गई थी। इस मिशन से वाजपेयी के लगाव का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है की उन्होंने स्कीम को प्रमोट करने वाली थीम “लाइन स्कूल चलें हम” खुद से लिखा था।

