भारत की आजादी में प्रमुख नाम है। महात्मा गांधी,लाला लाजपत राय,बालगंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, वल्लभभाई,अरविंदो घोष, नेताजी सुभाष चंद्र बोस चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सूर्य सिंह, बटुकेश्वर दत्त…ये सभी भारत की आजादी के प्रमुख दावेदार हैं। महात्मा गांधी के अहिंसा के पथ पर चलने के लिए बटुकेश्वर दत्त,भगत सिंह,चंद्रशेखर आजाद तैयार नहीं थे। उन्हें भारत की आजादी किसी भी कीमत पर चाहिए थी। महात्मा गांधी की अहिंसा की नीति और विचारों के मतभेद के चलते नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपना अलग ही दास्तान तैयार किया और आजाद हिंद फौज की नेताजी ने स्थापना की।
भारत को आजाद कराने के लिए जिस तरह भारतीय पुरुषों ने अपना जोर दिखाया उसी तरह भारतीय महिलाओं ने भी पुरुषों का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं के नाम एनी बेसेंट, सरोजनी नायडू मातंगिनी हाजरा और सिस्टर निवेदिता शामिल है जिन्होंने आजाद भारत के सपने को साकार करने में अहम योगदान दिया।

अंग्रेज़ भारत में और भारतीयों के दिलों में धीरे-धीरे आजादी के आग बढ़ते देख परेशान हुए। जिसके चलते अपना राज बनाए रखने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने फूट डालो राज करो की नीति अपनाई जिसके कारण उन्होंने हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों की एकता में फूट डालने की कोशिश की थी महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में कई कार्यक्रम भी किए गए जैसे नमक कानून को तोड़ना सरकारी संस्थाओं और शिक्षा केंद्रों का बहिष्कार महिलाओं द्वारा शराब की दुकानों और अफीम की दुकानों पर धरना देना विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना है।
अंग्रेजों ने ऐसा कानून बनाया था कि कोई भी भारतीय न तो नमक बना सकता था और ना ही बेच सकता था जिसके जवाब में महात्मा गांधी ने भी 20 मार्च 1930 को 78 अनुयायियों के साथ साबरमती से दांडी तक पैदल 200 मिल का रास्ता तय किया। महात्मा गांधी समुद्र किनारे पानी से नमक बनाकर उन्होंने अंग्रेजों के नमक कानून को तोड़ा जिसकी वजह से महात्मा गांधी को जेल भी जाना पड़ा लेकिन यह आंदोलन शुरु हो चुका था इस आंदोलन को नमक आंदोलन के नाम से जाना जाता है। ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी के आंदोलन को पूरी तरह से दबाने का प्रयास किया गांधी और नेहरू समेत हजारों लोग जेल में डाल दिए।
साइमन कमीशन के विरोध में हो रहे आंदोलन में लाला जी की मौत से देश की आजादी के लिए हो रहे आंदोलन में और भी तेजी आ गई हालांकि भगत सिंह और उनकी पार्टी को बहुत जोर का झटका लगा है। भगत सिंह और उनके साथियों ने ठान लिया कि अंग्रेजों को इसका जवाब देना होगा और लाला जी की मौत के जिम्मेदार लोगों को मार डाला जाएगा भगत सिंह ने साथियों के साथ मिलकर पुलिस के ऑफिसर स्कॉट को मारने का प्लान बनाया लेकिन उसकी जगह गलती से उसके असिस्टेंट पुलिस अफसर सांडर्स की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद ही विदेशी निरंकुश शासन के खिलाफ प्रदर्शन के बाद दिल्ली के असेंबली हॉल में बम फेंकने के आरोप में भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।
