हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे आ रहे हैं। शुरुआती रुझानों में हरियाणा में बड़ा उलटफेर होता दिख रहा है। राज्य में बीजेपी ने बहुमत का आंकड़ा 46 पार कर लिया है। इस बार भारतीय जनता पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया है। चुनाव आयोग द्वारा जारी रुझानों के मुताबिक भाजपा 90 सीटों में से 49 सीटों पर आगे चल रही है। जबकि कांग्रेस 36 सीटों पर आगे चल रही है। अन्य दलों में आईएनएलडी 2 सीटों पर आगे है। जबकि बाकी अन्य पार्टियों के पास कुल 3 सीटें हैं। हरियाणा के 57 साल के इतिहास में पहली बार कोई पार्टी लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। भाजपा की इस ऐतिहासिक जीत पर दिल्ली में भाजपा कार्यालय में जोरदार जश्न की तैयारी की जा रही है।
हरियाणा में कैसे पलटी बीजेपी ने बाजी?
पार्टी के इस जीत के कई मायने निकाले जा रहे हैं इनमें गैर जाट वोटों का ध्रुवीकरण, दलित वोटों का बीजेपी की तरफ मुड़ना साथ ही कई सीटों पर बीजेपी संगठन का माइक्रोमैनेजमेंट। हरियाणा में बीजेपी के जीत निश्चित रूप से अप्रत्याशित है। अप्रत्याशित इसलिए कि 10 साल सत्ता में रहने के बाद पार्टी के सामने एंटी-इनकमबैंसी थी। टिकट बंटवारे के बाद पार्टी के कई नेताओं ने खुलकर बगावत कर दी थी। एग्जिट पोल में भी बीजेपी की हार की संभावना जताई गई। इन सबके बावजूद बीजेपी की जीत निश्चित रूप से बहुत खास है। आइए जानते हैं बीजेपी की जीत के 5 असली कारण कौन से रहे?
गैर जाट वोटों का ध्रुवीकरण करने में सफल रही बीजेपी
2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 40 सीटें जीती थीं। 2024 में इनमें से 27 सीटें रिटेन कर ली हैं। यानी मौजूदा हर 3 में से 2 सीट जीत ली है। इसके अलावा 22 नई सीटें भी जीतीं। BJP हरियाणा चुनाव की लड़ाई को जाट बनाम गैर-जाट करने में सफल रही। गैर-जाटों को मैसेज दिया गया कि अगर हुड्डा सरकार वापस आई तो फिर वही आताताई सरकार आएगी जिसमें जीजा का बोलबाला होगा। दलितों में मैसेज दिया गया कि मिर्चपुर जैसे कांड होंगे।
कांग्रेस वोटबैंक में बीजेपी की सेंधमारी
हरियाणा में जाट वोटर बेहद निर्णायक हैं। किसान आंदोलन के बाद बार-बार यही बताया गया कि किसान बीजेपी से नाराज हैं। हरियाणा में अधिकतक किसान जाट हैं ऐसे में बीजेपी ने लगातार तीसरी बार ‘जाट वर्सेज नॉन-जाट’ के फॉर्मूले पर चुनाव लड़ी। बीजेपी ने अपने चुनावी मैनेजमेंट को मजबूत करते हुए जाटों के गढ़ में भी घुसपैठ की है। बीजेपी ने 22 नई सीटें जीतीं, इनमें 9 सीटें जाट बहुल बागड़ और देशवाल बेल्ट में जीती हैं। इसके अलावा पंजाबी और शहरी बहुल जीटी रोड बेल्ट को एक्सपर्ट्स बीजेपी की कमजोर कड़ी मान रहे थे, लेकिन बीजेपी ने वहां भी 7 नई सीटें जीती हैं।
सही समय पर CM बदला, कई सीटों पर प्रत्याशी भी
चुनावों से ठीक महीने पहले बीजेपी संगठन ने ये भांप लिया कि कैडर खट्टर से नाराज है। इसी जोखिम को खत्म करने के लिए बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपना जांचा-परखा, आजमाया दांव चल दिया। दांव मुख्यमंत्री बदलने का। पंजाबी खत्री मनोहर लाल खट्टर की जगह पर उनके ही भरोसेमंद नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया। चुनाव नतीजे बता रहे हैं कि बीजेपी का ये दांव कामयाब रहा है। इसके साथ ही बीजेपी ने सत्ताविरोधी रुझान और स्थानीय स्तर पर विधायक के लेवल पर वोटरों में नाराजगी को दूर करने के लिए सीएम बदलने के अलावा एक और दांव चला। दांव नए उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का। इससे कुछ सीटों पर पार्टी को बगावत का भी सामना करना पड़ा लेकिन पार्टी ने उसे बहुत तवज्जो नहीं दी। चुनाव में बीजेपी को इसका लाभ भी मिला और एंटी-इन्कंबेंसी की तपिश को खत्म करने में मदद मिली।
जमीनी स्तर पर संघ ने संभाली चुनावी कमान
बीजेपी ने इस चुनाव में लोकसभा चुनावों से सीख ली और जो कमियां लोकसभा चुनाव में थी उसे दुरुस्त करने की ठानी। इसके लिए इस चुनाव की बागडोर संघ ने संभाली। संघ कैडर को वोटर्स को चुनाव बूथ तक ले जाने की ज़िम्मेदारी दी जिसने बीजेपी की बारी हुई सीटों को जीत में तब्दील किया। बीजेपी पहली बार 2014 में हरियाणा की सत्ता में आई। 2019 में वह अपने दम पर बहुमत से दूर रही लेकिन जेजेपी की मदद से गठबंधन सरकार बनाने में कामयाब रही। हालांकि, लगातार दो कार्यकाल सत्ता में रहने पर एंटी-इन्कंबेंसी का जोखिम तो रहता ही लेकिन संघ के कार्य और माइक्रो मैनेजमेंट ने सिर्फ जीत ही नहीं दिलाई पार्टी को हरियाणा में और मजबूत भी कर दिया
