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Dev Deepawali: क्यों काशी में ही देवता मनाते हैं दीपावली, क्या है देव-दीपावली का महत्व

गंगा मैया के घाटों के किनारे बसी काशी, देव दिवाली के दिन एक दुल्हन की तरह लगती है, जो गंगा के 84 घाटों पर दीयों और आतिशबाजी का श्रृंगार करती है। काशी का यह अलौकिक और दिव्य स्वरुप मनमोहक होता है जिसे देख कर ऐसा लगता है कि देवताओं का स्वागत काशी से बेहतर कोई कर ही नहीं सकता। इस वर्ष भी कार्तिक पूर्णिमा यानी 15 नवंबर को देव दिवाली मनाई जाएगी। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव में त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। त्रिपुरासुर के आंतक से मुक्ति की खुशी में देवताओं ने स्वर्ग में दीप जलाकर दीवाली मनाई थी।

त्रिपुरासुर के अंत पर देवताओं ने मनाई दीवाली

शिव की नगरी काशी में देव दिवाली से जुड़ी विशेष परम्परा है। कहा ये भी जाता है कि त्रिपुरासुर के अंत होने की खुशी में सभी देवताओं ने भगवान शिव के धाम काशी पहुंच कर उनको धन्यवाद दिया और गंगा किनारे दीप प्रज्जवलित किए। तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली के रूप में मनाया जाने लगा। देव दीपावली वाराणसी में हर साल गंगा के तट पर दीपक जलाकर मनाई जाती है। देव दिवाली पर पूरे काशी में अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। इस दिन लोग मुख्य रूप से जलाशयों के पास दीपक रखकर प्रकाश करते हैं। साथ ही भगवान की विशेष रूप से पूजा अर्चना भी की जाती है

गंगा स्नान और दीप दान का है विशेष महत्व

हिन्दू धर्म में देव दिवाली का बहुत महत्व है और शास्त्रों के अनुसार इस दिन दीपदान का भी प्रावधान है। माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान के बाद दीपदान करने से पूरे वर्ष शुभ फल मिलता है। देव दीपावली के दिन मंदिर, घर के मुख्य द्वार और आंगन में दीया जरूर जलाना चाहिए। इस दिन देवी-देवताओं और इष्ट देव के नाम का भी दीया जलाया जाता है। देव दीपावली के दिन भगवान शिव, विष्णु जी और माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है।

Mayank Dwivedi
Author: Mayank Dwivedi

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