दिल्ली चुनाव के लिए दूसरे राज्यों से सीएम आकर प्रचार कर रहे हैं.बीजेपी ने अपने दिग्गज नेताओं को दिल्ली के चुनावी मैदान में उतार रखा है.पुष्कर सिंह धामी या फिर हेमंता बिस्वा बीजेपी के ये तमाम नेता दिल्ली में आकर प्रचार कर रहे हैं.दिल्ली में चुनाव प्रचार अपने आखिरी दौर में हैं इसलिए सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.दिल्ली में इस बार जनता का मूड क्या है ये कोई नहीं समझ पा रहा.तीन बार से सत्ता में काबिज आप के लिए इस बार जीतना इतना आसान नहीं होने वाला है लेकिन बीजेपी हो कांग्रेस हो या फिर आप ये सभी पार्टियां प्रवासियों को साधने के में क्यों लगी है.केजरीवाल ने प्रवासियों के लिए अपने मेनिफेस्टों में कई ऐलान किए.कुछ ऐसा ही खेल कांग्रेस ने किया लेकिन बीजेपी ने तो दूसरे राज्यों के सीएम को दिल्ली में ही उतार दिया.दिल्ली में यूपी बिहार एमपी पंजाब उत्तराखंड से आकर यहां बसने वालों की तादाद लगभग सतर प्रतिशत है…ये लोग सतर में से पचपन सीटों पर सरकार बनाने और गिराने की ताकत रखते है.दिल्ली में रहने के बाद भी इनका जुड़ाव अपने शहर औऱ अपने गांव से अच्छा खासा है…यही वजह है की तमाम पार्टिया इन वोटरों को साध कर सत्ता की चाबी अपने नाम करना चाहती है.पंजाबी लोगों की तदाद दिल्ली की जनसंख्या की बीच प्रतिशत है इन लोगों का दिल्ली की राजनीति में भी अच्छा खासा दबदबा रहा है….दिल्ली के सीएम मदन लाला खुराना,शीला दीक्षित हो या फिर सुषमा स्वाराज ये सभी पंजाबी समाज से ताल्लुक रखते थे.इसके अलावा दिल्ली में पच्चीस फीसदी पूर्वाचली मतदाता है जो की दिल्ली के चौबीस सीटों का फैसला करते हैं.इसके अलावा उत्तराखंड के लोगों का प्रतिशत पांच प्रतिशत है जो दस सीटों पर राजनीतिक समीकरण बना और बिगाड़ सकते हैं.यही वजह है की तमाम पार्टिया प्रवासियों को साध कर दिल्ली की सत्ता अपने नाम करना चाहती है.इसके लिए सभी पार्टियों ने क्षेत्रिय से लेकर जातीय समीकरण चलने का दांव चला है.वैसे तो दिल्ली में किसी जाति या फिर किसी धर्म का दबदबा नहीं है लेकिन ऐसा कई फैक्टर है जिनके पास दिल्ली सत्ता की चाभी है और इसको हर पार्टी बखुबी तरीके से समझती है.
