राणा सांगा विवाद: अपर्णा यादव की एंट्री और राजनीतिक बयानबाज़ी
प्रस्तावना
हाल ही में समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा दिए गए बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। उन्होंने दावा किया कि महान राजपूत योद्धा राणा सांगा ने मुगल सम्राट बाबर को भारत आने का निमंत्रण दिया था। इस बयान से विवाद खड़ा हो गया और भाजपा समेत कई संगठनों ने सुमन के बयान की कड़ी निंदा की।
अब इस विवाद में मुलायम सिंह यादव की बहू और भाजपा नेत्री अपर्णा यादव भी कूद पड़ी हैं। उन्होंने समाजवादी पार्टी और विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि भारतीय इतिहास वीरों के बलिदान की गाथाओं से भरा पड़ा है और नेताओं को इस तरह की भ्रामक बातें नहीं करनी चाहिए।
क्या है पूरा मामला?
- रामजी लाल सुमन का बयान:
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामजी लाल सुमन ने राज्यसभा में कहा कि राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था, ताकि वे इब्राहिम लोदी को हरा सकें। उनका कहना था कि बाबर को भारतीय मुस्लिम अपना आदर्श नहीं मानते, बल्कि इस्लाम के पैगंबर और सूफी परंपरा को महत्व देते हैं। - भाजपा का पलटवार:
भाजपा नेताओं ने इस बयान को इतिहास का गलत चित्रण बताया और सुमन से माफी मांगने की मांग की। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और भाजपा के कई नेताओं ने सुमन के बयान की निंदा की और इसे राजपूत वीरता का अपमान करार दिया। - अपर्णा यादव की प्रतिक्रिया:
उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष और भाजपा नेता अपर्णा यादव ने विपक्ष को घेरते हुए कहा कि भारत का इतिहास वीर राजाओं के बलिदान से भरा पड़ा है। उन्होंने कहा कि नेताओं को इतिहास का अध्ययन कर बयान देना चाहिए और सुमन को अपने बयान पर माफी मांगनी चाहिए। - समाजवादी पार्टी का बचाव:
विवाद बढ़ता देख सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने सांसद का बचाव किया और कहा कि इतिहास के तथ्यों पर चर्चा हो सकती है, इसमें कोई समस्या नहीं है। उन्होंने भाजपा पर इतिहास को राजनीतिक रंग देने का आरोप लगाया। - हिंदू संगठनों का विरोध:
करणी सेना और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों ने इस बयान के खिलाफ कड़ा विरोध जताया और सुमन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की।
क्या कहता है इतिहास?
इतिहासकारों के अनुसार, राणा सांगा ने बाबर को भारत आने का निमंत्रण नहीं दिया था, बल्कि खिलजी वंश और दिल्ली सल्तनत के विस्तारवादी मंसूबों को रोकने के लिए बाबर से गठजोड़ की संभावना जताई थी। हालांकि, बाद में खानवा के युद्ध (1527) में राणा सांगा और बाबर आमने-सामने हो गए, जहां बाबर ने जीत दर्ज की।
राजनीतिक मायने और आगे की राह
यह विवाद अब केवल इतिहास तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राजनीतिक बहस का रूप ले चुका है।
- भाजपा इसे राजपूत गौरव से जोड़कर सपा पर हमलावर है।
- सपा इसे इतिहास की चर्चा बताते हुए भाजपा पर राजनीतिक फायदा उठाने का आरोप लगा रही है।
- अपर्णा यादव जैसे नेता युवाओं को सही इतिहास पढ़ने की सलाह दे रहे हैं।
निष्कर्ष
राणा सांगा को लेकर छिड़ा यह विवाद सिर्फ एक ऐतिहासिक बहस नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक चर्चा का केंद्र बन चुका है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि रामजी लाल सुमन अपने बयान पर कायम रहते हैं या माफी मांगते हैं, और भाजपा इस मुद्दे को कितनी दूर तक ले जाती है।
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