सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को शरणार्थियों को लेकर अहम टिप्पणी की। शीर्ष अदालत(Supreme Court) ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, दुनिया भर से आए शरणार्थियों को भारत में शरण क्यों दें? हम 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। हम हर जगह से आए शरणार्थियों को शरण नहीं दे सकते। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता ने श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थी को हिरासत में लिए जाने के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए ये बात कही।
अनुच्छेद 19 केवल देश के नागरिकों को भारत में बसने का अधिकार देता है-SC
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच एक श्रीलंकाई नागरिक की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे 2015 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) से जुड़े होने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था, जो एक समय श्रीलंका में सक्रिय एक आतंकवादी संगठन था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने याचिका पर दखल देने से इनकार कर दिया। पीठ मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें निर्देश दिया गया था कि याचिकाकर्ता को UAPA मामले में लगाए गए 7 साल की सजा पूरी होते ही तुरंत भारत छोड़ देना चाहिए। सुनवाई के दौरान जस्टिस दत्ता ने पूछा कि यहां बसने का आपका क्या अधिकार है? वकील ने दोहराया कि याचिकाकर्ता एक शरणार्थी है, श्रीलंका में जान का खतरा है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा – “अगर खतरा है, तो किसी और देश में जाएं। भारत में रहने का आपका संवैधानिक अधिकार नहीं है।” कोर्ट(Supreme Court) ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 केवल देश के नागरिकों को भारत में बसने का अधिकार देता है, न कि विदेशियों को। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप से साफ इनकार कर दिया और याचिका को खारिज कर दिया।
बता दें, साल 2015 में याचिकाकर्ता को दो अन्य लोगों के साथ LTTE ऑपरेटिव होने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था। साल 2018 में याचिकाकर्ता को UAPA की धारा-10 के तहत अपराध के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया था और उसे दस साल की कैद की सजा सुनाई गई थी।
