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“अब अंग्रेज़ी बोलने वालों को शर्म महसूस होगी”: अमित शाह का बड़ा बयान, क्या बदलेगा भारत का भाषाई संतुलन?

AMIT Shah

📰 “अब अंग्रेज़ी बोलने वालों को शर्म महसूस होगी”: अमित शाह का बड़ा बयान, क्या बदलेगा भारत का भाषाई संतुलन?

✍️ लेखक: न्यूज़ व्यूज़ टीम | 📅 अपडेटेड: 19 जून 2025


📚 नई दिल्ली: किताब के विमोचन पर छिड़ गई भाषा की बहस

19 जून 2025 को नई दिल्ली में एक साधारण से पुस्तक विमोचन समारोह ने देशभर में एक नई बहस को जन्म दे दिया। यह अवसर था पूर्व आईएएस अधिकारी अशुतोष अग्निहोत्री की नई किताब के लॉन्च का। मंच पर देश के गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे।

कार्यक्रम के दौरान अमित शाह ने जो बातें कहीं, वह अगले कुछ ही घंटों में ट्रेंडिंग न्यूज़ बन गईं। उन्होंने साफ शब्दों में कहा:

“अब वह दिन दूर नहीं जब अंग्रेज़ी बोलने वालों को शर्म महसूस होगी। हमें गर्व है अपनी भाषाओं पर।”


🗣️ बयान की गूंज: तारीफ़ भी, आलोचना भी

अमित शाह का यह बयान भाषाई अस्मिता और सांस्कृतिक स्वाभिमान के संदर्भ में था, लेकिन सोशल मीडिया पर इसकी दो दिशाओं में प्रतिक्रिया देखने को मिली:

  • कुछ लोगों ने इसे “भारतीय भाषाओं को सम्मान देने वाला कदम” बताया।
  • वहीं दूसरी ओर, कई ने इसे “भाषाई विभाजन और अंग्रेज़ी बोलने वालों के खिलाफ बयान” करार दिया।

📅 अब तक क्या-क्या हुआ? (19 जून 2025 तक)

✅ 1. अमित शाह का बयान वायरल

उनका बयान यूट्यूब, ट्विटर (X), इंस्टाग्राम और न्यूज़ चैनलों पर खूब चलाया गया।
#AmitShah #LanguageDebate ट्रेंड करने लगे।

✅ 2. राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

कांग्रेस, AAP, और TMC नेताओं ने इस बयान को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी।
कांग्रेस ने कहा — “ये बयान भारत की विविधता को चोट पहुंचाने वाला है।”

✅ 3. भाषाविदों की राय

भारतीय भाषाओं के विशेषज्ञों ने कहा कि देश में भाषाई गर्व जरूरी है, लेकिन किसी भाषा विशेष को नीचा दिखाना संतुलित दृष्टिकोण नहीं है।

✅ 4. अग्निहोत्री की किताब चर्चा में

इस बयान के चलते पुस्तक से ज़्यादा चर्चा खुद विमोचन मंच की होने लगी।
अग्निहोत्री की किताब “भारत का नया प्रशासनिक मार्ग” अब बेस्टसेलर की ओर बढ़ रही है।


💬 क्या कहा अमित शाह ने?

उन्होंने कहा:

“हमें वो मानसिकता बदलनी है जिसमें अंग्रेज़ी बोलने को श्रेष्ठता और हिंदी या अन्य भारतीय भाषा बोलने को हीनता माना जाता है। हमारी भाषाओं में अपार ज्ञान और परंपरा है। अब समय आ गया है कि हम अपने बच्चों को मातृभाषा में सोचने और बोलने के लिए प्रेरित करें।”


🧭 अब आगे क्या?

केंद्रीय सरकार पहले ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में मातृभाषा पर ज़ोर देने की नीति बना चुकी है। ऐसे में यह बयान उस दिशा में राजनीतिक समर्थन की तरह देखा जा रहा है।

हालांकि यह भी साफ है कि अंग्रेज़ी का महत्व अभी खत्म नहीं हुआ — वैश्विक मंच, डिजिटल दुनिया और कॉर्पोरेट सेक्टर में इसकी भूमिका अहम बनी रहेगी।


📌 निष्कर्ष

🔍 विश्लेषण: भाषा बनाम पहचान

भारत जैसे देश में भाषा केवल एक संवाद का माध्यम नहीं, पहचान और आत्म-सम्मान का प्रतीक बन चुकी है। हिंदी, तमिल, तेलुगु, मराठी, पंजाबी, बंगाली — हर भाषा की अपनी संस्कृति और गहराई है।

लेकिन यह भी सच्चाई है कि अंग्रेज़ी एक वैश्विक माध्यम है, और भारत के लाखों युवाओं के लिए यह करियर और शिक्षा की कुंजी बनी हुई है।

इसलिए बात केवल गर्व और शर्म की नहीं — संतुलन और सह-अस्तित्व की है।


📌 निष्कर्ष: यह बहस सिर्फ भाषा की नहीं, मानसिकता की है

अमित शाह के बयान ने हमें फिर सोचने पर मजबूर किया है — क्या अंग्रेज़ी बोलना ही श्रेष्ठता का प्रतीक है?
या फिर अब वक़्त आ गया है कि हम अपनी मूल भाषाओं में भी आत्मविश्वास से बोल सकें?

शायद दोनों को साथ लेकर चलना ही सही रास्ता है। न अंग्रेज़ी को नीचा दिखाना ज़रूरी है, न भारतीय भाषाओं को छुपाना।


🔔 आपका क्या विचार है इस बयान पर? क्या आप अपनी मातृभाषा में बोलने में गर्व महसूस करते हैं? हमें कमेंट में ज़रूर बताएं।


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Author: newsviewss

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