होर्मुज खाड़ी की बंदी की इजाज़त – भारत और दुनिया के लिए कितना खतरनाक संकेत?
क्या है होर्मुज खाड़ी की अहमियत?
होर्मुज खाड़ी एक संकीर्ण जलमार्ग है जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ता है। ये वही रास्ता है जिससे दुनिया का लगभग 20% कच्चा तेल हर दिन गुजरता है। इस रास्ते से ईरान, इराक, सऊदी अरब, कुवैत, कतर और यूएई जैसे देशों का तेल एशिया और बाकी दुनिया में जाता है।
भारत जैसे देशों के लिए, जो अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का एक बड़ा हिस्सा इसी इलाके से पूरा करते हैं, होर्मुज का खुला रहना बेहद ज़रूरी है।
क्यों बंद करना चाह रहा है ईरान?
ईरान की संसद ने इस कदम को “प्रतिशोध की नीति” का हिस्सा बताया है। इजरायल-गाज़ा युद्ध, अमेरिका और पश्चिमी देशों की बढ़ती सैन्य गतिविधियाँ, और सबसे अहम – ईरान के परमाणु ठिकानों पर हुई हालिया एयरस्ट्राइक – इन सबने तेहरान को आक्रामक रुख अपनाने पर मजबूर किया।
ईरानी सांसदों का कहना है कि जब तक “दुश्मन ताकतें” क्षेत्र में हस्तक्षेप करती रहेंगी, तब तक ईरान के पास भी जवाबी कदम उठाने का अधिकार है।
भारत के लिए खतरे की घंटी क्यों?
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है और इसका 60% से अधिक कच्चा तेल पश्चिम एशिया से आता है। यदि होर्मुज खाड़ी बंद होती है या वहां तनाव बढ़ता है तो:
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तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं।
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भारत को वैकल्पिक मार्गों से तेल लाना पड़ेगा, जो महंगा पड़ेगा।
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रूपये पर दबाव बढ़ेगा, महंगाई बढ़ेगी।
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समुद्री व्यापार, खासतौर पर कंटेनर ट्रैफिक पर असर पड़ेगा।
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रणनीतिक रूप से भारत की फारस की खाड़ी में मौजूदगी प्रभावित हो सकती है।
कूटनीतिक संकट या सैन्य टकराव?
यह स्पष्ट है कि ईरान के इस कदम का असर सिर्फ आर्थिक नहीं होगा – यह कूटनीतिक और सैन्य दबाव भी बढ़ाएगा। अमेरिका, जो पहले ही रेड सी और फारस की खाड़ी में अपने युद्धपोत तैनात कर चुका है, शायद कोई जवाबी कार्रवाई करे।
इजरायल-ईरान के बीच सीधा युद्ध, अमेरिका का हस्तक्षेप, और इसके बाद ईरान द्वारा तेल व्यापार को रोकने का प्रयास – ये सब विश्व युद्ध जैसे संकेत दे रहे हैं।
भारत की चिंता क्यों जायज है?
1. ऊर्जा आयात पर निर्भरता
भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का लगभग 80% आयात करता है, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा पश्चिम एशियाई देशों से आता है। यूएई, सऊदी अरब, कुवैत, और ईरान जैसे देशों से आने वाला तेल होर्मुज खाड़ी के रास्ते ही आता है। अगर यह रास्ता बंद हुआ, तो भारत को वैकल्पिक मार्ग ढूंढने होंगे, जो न केवल लंबा होगा बल्कि महंगा भी।
2. कीमतों में उछाल
यदि आपूर्ति बाधित होती है तो अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। इससे भारत में पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ सकते हैं, जिससे महंगाई का नया दौर शुरू हो सकता है।
3. भू-राजनीतिक दवाब
भारत अमेरिका और ईरान — दोनों के साथ रिश्ते बनाए रखने की कोशिश करता रहा है। लेकिन इस स्थिति में डिप्लोमैटिक बैलेंस बनाना बेहद मुश्किल होगा। भारत को तय करना पड़ेगा कि वह किस पक्ष में खड़ा है या तटस्थ रहकर कैसे राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सकता है।
भारत की रणनीति क्या हो सकती है?
भारत के सामने फिलहाल तीन मुख्य विकल्प हैं:
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राजनयिक हस्तक्षेप: भारत को इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए ईरान और अमेरिका दोनों से बातचीत करनी होगी।
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तेल आपूर्ति के विकल्प: भारत को अन्य स्रोतों से तेल आयात बढ़ाने पर काम करना होगा — जैसे रूस, अमेरिका, ब्राजील आदि।
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स्ट्रैटेजिक रिजर्व्स का उपयोग: भारत के पास रणनीतिक तेल भंडार हैं, जिन्हें ऐसे आपातकालीन हालात में उपयोग में लाया जा सकता है।
भारत का रुख अब तक कैसा रहा है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में क्षेत्र में शांति और कूटनीति की अपील की है। भारत अब तक तटस्थता की नीति पर चलता रहा है – न ईरान के खिलाफ, न इजरायल के पक्ष में। लेकिन इस स्थिति में भारत को स्मार्ट बैलेंसिंग करनी होगी:
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ऊर्जा सुरक्षा बनाए रखना।
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पश्चिमी देशों से रिश्ते न बिगड़ें।
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ईरान के साथ पारंपरिक संबंध भी प्रभावित न हों।
क्या हो सकते हैं विकल्प?
भारत को होर्मुज के अलावा वैकल्पिक तेल स्रोतों और सप्लाई चेन पर काम करना होगा:
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अमेरिका, रूस और लैटिन अमेरिका से तेल आयात बढ़ाना।
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रणनीतिक पेट्रोलियम भंडारण (Strategic Petroleum Reserve) को सक्रिय करना।
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घरेलू तेल खोज और उत्पादन पर ज़ोर देना।
ईरान द्वारा होर्मुज खाड़ी को बंद करने की मंजूरी सिर्फ एक कागज़ी प्रस्ताव नहीं है। यह एक रणनीतिक चेतावनी है – पूरी दुनिया को, खासकर उन देशों को जो तेल पर निर्भर हैं। भारत जैसे देशों को अब “प्रतीक्षा और देखो” की नीति छोड़कर प्रोएक्टिव कूटनीति और आर्थिक रणनीति अपनानी होगी।
होर्मुज खाड़ी की बंदी की इजाज़त – भारत और दुनिया के लिए कितना खतरनाक संकेत?
