“रूस ने तालिबान सरकार को दी मान्यता: पाकिस्तान को झटका, भारत के लिए नया भू-राजनीतिक समीकरण?”
3 जुलाई, 2025 को अफगानिस्तान की राजनीति में एक बड़ा मोड़ आया, जिसने अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी हलचल मचा दी। तालिबान सरकार ने खुद ऐलान किया कि रूस ने आधिकारिक रूप से उनके शासन को मान्यता दे दी है। ये वही तालिबान है, जिसे दुनिया का अधिकांश हिस्सा अब तक आतंकवादी संगठन या अस्थिर शासन के तौर पर देखता आया है।
जहाँ एक ओर पाकिस्तान हमेशा से तालिबान का ‘गुप्त सहयोगी’ रहा है, वहीं अब रूस की यह मान्यता पाकिस्तान के चेहरे पर तमाचा जैसी लग रही है। क्योंकि वह अब भी तालिबान को वैध रूप से मान्यता देने की स्थिति में नहीं है — वहीं भारत के लिए यह फैसला एक रणनीतिक सोच की ओर इशारा कर सकता है।
🇷🇺 रूस ने क्यों उठाया यह कदम?
रूस का यह फैसला अचानक नहीं आया। पिछले कुछ महीनों से मॉस्को और काबुल के बीच राजनीतिक संवाद तेज़ हो गया था। तालिबान सरकार की ओर से बार-बार ये बयान आ रहा था कि वे देश को स्थिरता की ओर ले जा रहे हैं। रूस की सोच शायद यह है कि अफगानिस्तान में अब जो भी सत्ता में है, उसे अनदेखा करने की जगह राजनयिक रूप से संलग्न होना ज्यादा फायदेमंद होगा।
रूस अब पहला ऐसा बड़ा देश बन गया है जिसने अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात को मान्यता दी है, जिससे तालिबान की अंतरराष्ट्रीय छवि को बल मिलेगा।
🇵🇰 पाकिस्तान की मुश्किलें क्यों बढ़ीं?
पाकिस्तान दशकों से तालिबान का समर्थन करता आया है — चाहे वो खुलकर हो या छुपकर। ISI और तालिबान के रिश्ते जगजाहिर हैं। मगर अंतरराष्ट्रीय दबाव और आतंकी संगठनों को लेकर दुनिया की नजरों से बचने के लिए पाकिस्तान कभी तालिबान को “आधिकारिक मान्यता” नहीं दे सका।
अब जब रूस जैसे ताकतवर देश ने यह कदम उठा लिया है, तो पाकिस्तान की स्थिति असहज हो गई है। क्योंकि अब तालिबान सीधे रूस से संवाद करेगा, और पाकिस्तान की मध्यस्थता की ज़रूरत कम हो जाएगी। इससे पाकिस्तान का कूटनीतिक महत्व घटेगा।
🇮🇳 भारत के लिए क्या मायने हैं?
भारत हमेशा से अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार का समर्थन करता आया है। तालिबान के कब्जे के बाद भारत ने अपने दूतावास बंद किए थे और अफगानिस्तान से दूरी बना ली थी। मगर रूस का यह कदम भारत को सोचने पर मजबूर कर सकता है — क्या भारत को भी अब यथार्थवादी नीति अपनानी चाहिए?
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रूस भारत का सामरिक और व्यापारिक सहयोगी है।
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भारत को अब यह देखना होगा कि क्या वह अफगानिस्तान के साथ न्यूनतम संवाद रखे या पूरी दूरी बनाए रखे।
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अगर भारत पूरी दूरी बनाए रखता है, तो रूस, चीन और पाकिस्तान अफगानिस्तान में प्रभाव बढ़ा सकते हैं — जिससे भारत के क्षेत्रीय हित खतरे में पड़ सकते हैं।
🌐 क्या यह कदम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान की मान्यता को बढ़ावा देगा?
हो सकता है। क्योंकि अगर रूस जैसा देश पहला कदम उठाता है, तो चीन, ईरान, तुर्की जैसे देश भी इस लाइन में लग सकते हैं। खासकर तब, जब अफगानिस्तान में खनिज संसाधनों और रणनीतिक महत्व को ध्यान में रखा जाए।
अगर तालिबान अपनी घरेलू नीतियों में थोड़ी उदारता दिखाए — जैसे कि महिलाओं की शिक्षा या मानवाधिकारों को लेकर — तो पश्चिमी देशों पर भी दबाव बन सकता है।
रूस का यह फैसला केवल एक कूटनीतिक मान्यता नहीं है, बल्कि यह एक संकेत है कि दुनिया अब यथार्थ की ओर झुक रही है — जो सत्ता में है, उससे संवाद ज़रूरी है। पाकिस्तान के लिए यह एक बड़ा झटका है, क्योंकि उसकी वर्षों की ‘पैतृक’ नीति को रूस ने नज़रअंदाज़ कर दिया।
भारत के लिए यह समय है राजनयिक सतर्कता दिखाने का। यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस नई अफगान पॉलिटिक्स में क्या रुख अपनाता है।
