“श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: ईदगाह को ‘विवादित ढांचा’ मानने से इनकार, हिंदू पक्ष को झटका”
✍️ एक भारतीय नागरिक की नजर से…
श्रीकृष्ण जन्मभूमि, मथुरा की वो पवित्र ज़मीन, जहां करोड़ों लोगों की आस्था बसती है। हर भक्त के मन में एक सपना है कि वहां एक भव्य मंदिर हो — जैसा कि भगवान श्रीकृष्ण की लीला भूमि के लिए उपयुक्त है। लेकिन इस सपने को झटका उस समय लगा जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि ईदगाह को ‘विवादित ढांचा’ नहीं माना जा सकता।
यह टिप्पणी हिंदू पक्ष के लिए एक बड़ा झटका मानी जा रही है, जो लंबे समय से यह दावा कर रहे हैं कि ईदगाह श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बनी है और उसे हटाया जाना चाहिए।
⚖️ कोर्ट का क्या कहना है?
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान और ईदगाह मस्जिद विवाद पर सुनवाई करते हुए यह कहा कि अभी तक जो दस्तावेज, प्रमाण और तथ्य पेश किए गए हैं, उनमें ऐसा कुछ नहीं पाया गया जिससे यह कहा जा सके कि ईदगाह कोई “विवादित ढांचा” है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मौजूदा रिकॉर्ड और कानूनी आधारों पर ईदगाह को वैध धार्मिक स्थल माना गया है। कोर्ट का यह भी कहना है कि यदि भविष्य में कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत किए जाते हैं, तो उस पर पुनर्विचार संभव है।
📜 क्या है मामला?
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श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और हिंदू पक्ष का कहना है कि ईदगाह मस्जिद 13.37 एकड़ की उस जमीन पर बनी है जो श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मानी जाती है।
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यह भी आरोप है कि मुग़ल शासक औरंगज़ेब के समय इस पवित्र स्थल को तोड़कर वहां मस्जिद बना दी गई थी — जैसा कि वाराणसी के ज्ञानवापी विवाद में भी कहा जाता है।
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हिंदू पक्ष की ओर से यह भी याचना की गई थी कि ईदगाह को “विवादित ढांचा” मानते हुए उसे हटाया जाए।
लेकिन कोर्ट ने फ़िलहाल इन दावों को कानूनी रूप से पर्याप्त नहीं माना।

📌 इस फैसले का क्या असर होगा?
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हिंदू पक्ष की रणनीति को झटका:
अब हिंदू पक्ष को और अधिक ठोस साक्ष्य इकट्ठा करने होंगे, जिससे वे यह साबित कर सकें कि मस्जिद का निर्माण एक मंदिर तोड़कर किया गया था। -
मुस्लिम पक्ष को राहत:
कोर्ट की टिप्पणी से ईदगाह मस्जिद की वैधता को बल मिला है। यह टिप्पणी मुस्लिम समुदाय में राहत की तरह देखी जा रही है। -
राजनीतिक हलचल:
यह मामला वैसे भी धार्मिक भावना और राजनीति का केंद्र रहा है। कोर्ट की टिप्पणी के बाद राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं आनी तय हैं। -
भविष्य में क्या हो सकता है?
यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है। संभावना है कि यह सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे। ज्ञानवापी और अयोध्या जैसे केसों की तरह, यह भी सालों तक न्यायिक प्रक्रिया में बना रह सकता है।
📢 जनभावनाएं क्या कहती हैं?
मथुरा के स्थानीय लोगों और हिन्दू संगठनों का कहना है कि वे अपनी आस्था से पीछे नहीं हटेंगे।
भले ही अदालत ने अभी इसे ‘विवादित ढांचा’ न माना हो, लेकिन उनका संघर्ष जारी रहेगा। वहीं, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि कोर्ट का यह फैसला सद्भावना और कानूनी प्रक्रिया की जीत है।
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश में, किसी भी धार्मिक विवाद को सिर्फ भावनाओं के आधार पर नहीं बल्कि तथ्यों, साक्ष्यों और संविधान के मुताबिक ही हल किया जाना चाहिए।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि का विवाद बेहद संवेदनशील है, इसलिए इसमें धैर्य, कानून और आपसी सम्मान जरूरी है।
कोर्ट की इस टिप्पणी से यह स्पष्ट हो गया है कि कोई भी ऐतिहासिक दावा सिर्फ आस्था के आधार पर नहीं माना जा सकता, जब तक कि उसके पीछे कानूनी आधार न हो।
