“क्या महाराष्ट्र की सियासत लेगी नई करवट? ठाकरे बंधु एक मंच पर, पवार-कांग्रेस ने बनाई दूरी”
महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ घटनाएं सिर्फ घटनाएं नहीं होतीं, वे संकेत होती हैं — बदलाव के, समीकरणों के और संभावनाओं के। 20 साल बाद पहली बार ठाकरे बंधु — उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे — एक ही मंच पर दिखाई देने वाले हैं, तो जाहिर है कि चर्चा, अटकलें और सियासी तापमान सब अपने चरम पर हैं।
लेकिन इस राजनीतिक संगम में एक बात जो लोगों की नजर में चुभ रही है, वह है एनसीपी (शरद पवार गुट) और कांग्रेस का दूरी बनाना। तो क्या यह रैली किसी नए गठबंधन की नींव है? या फिर यह महज प्रतीकात्मक एकजुटता? आइए, इस पूरे घटनाक्रम को विस्तार से समझते हैं।
🔴 ठाकरे बंधु एक मंच पर: इतिहास बनते देख रहा महाराष्ट्र
बीते दो दशकों में राज और उद्धव ठाकरे के रास्ते न सिर्फ राजनीतिक रूप से अलग हुए, बल्कि उनके बीच व्यक्तिगत कटुता भी किसी से छिपी नहीं रही। एक समय बालासाहेब ठाकरे के उत्तराधिकारी को लेकर उठा विवाद आज भी महाराष्ट्र की राजनीति में अहम मोड़ था।
लेकिन इस बार, किसी आंदोलन, जनहित के मुद्दे या फिर शक्ति प्रदर्शन के रूप में एक “विजय रैली” के बहाने दोनों एक मंच पर आने जा रहे हैं। इस रैली में एमएनएस और शिवसेना (उद्धव गुट) के कार्यकर्ताओं के बीच साझा भावना देखने को मिलेगी।

🔶 तो क्या फिर एक होगा ठाकरे परिवार?
यह सवाल अब हर शिवसैनिक, हर मराठी वोटर के ज़ेहन में घूम रहा है। अगर यह मंच साझा करना सिर्फ राजनीतिक संयोग नहीं, बल्कि भविष्य की रणनीति है, तो यह महाराष्ट्र की सियासत को पूरी तरह से बदल सकता है।
-
राज ठाकरे, जो पहले ही भाजपा के करीब माने जाते हैं, क्या अब “मराठी अस्मिता” के पुराने एजेंडे पर फिर से लौटना चाह रहे हैं?
-
वहीं उद्धव ठाकरे, जो शिवसेना को अब एक प्रगतिशील छवि देने में लगे हैं, क्या अपने पिता की विरासत के लिए फिर से पारिवारिक एकता पर जोर देंगे?
🟡 शरद पवार और कांग्रेस की दूरी: क्या संकेत हैं?
इस रैली से शरद पवार और कांग्रेस नेताओं का गायब रहना अपने आप में बहुत कुछ कह रहा है।
-
एक ओर जहां यह INDIA गठबंधन में दरार का इशारा हो सकता है,
-
वहीं यह भी मुमकिन है कि कांग्रेस और एनसीपी नहीं चाहते कि उद्धव ठाकरे भाजपा के करीब माने जाने वाले राज ठाकरे के साथ ज्यादा तस्वीरों में नजर आएं।
इसका दूसरा पहलू यह है कि उद्धव खुद अब कांग्रेस और पवार के बजाय, ठाकरे परिवार की सियासी ताकत पर भरोसा जताना चाह रहे हैं।
🟢 जनता का क्या कहना है?
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की भरमार है:
-
“अब तो शिवसेना फिर से मजबूत होगी!”
-
“बालासाहेब की आत्मा को शांति मिलेगी अगर दोनों बेटे साथ आ जाएं…”
-
“ये सब भाजपा की चाल भी हो सकती है…”
जनता में उत्साह भी है, भ्रम भी है — लेकिन यह साफ है कि यह दृश्य महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल ला सकता है।
🟠 क्या असर पड़ेगा 2029 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर?
-
यदि ठाकरे बंधु एक हो जाते हैं, तो शिवसेना (एकीकृत) को मराठी मतों का बड़ा समर्थन मिल सकता है।
-
भाजपा को मजबूरन एमएनएस के बजाय किसी नए सहयोगी की तलाश करनी पड़ सकती है।
-
कांग्रेस और एनसीपी को भी अपनी रणनीति फिर से तय करनी पड़ेगी, क्योंकि शिवसेना के वोट बैंक में सेंध लगाना अब और मुश्किल हो जाएगा।
ठाकरे बंधुओं का एक मंच पर आना सिर्फ एक रैली नहीं है — यह एक बड़ा सियासी संकेत है।
अगर यह मिलन सिर्फ मंच साझा करने तक ही सीमित रहा, तब भी इसकी चर्चा रहेगी।
और अगर वाकई यह “एकता” भविष्य की साझी रणनीति का हिस्सा है, तो महाराष्ट्र की सियासत की गाड़ी अब नए ट्रैक पर दौड़ने वाली है।
