“क्या चीन में बदलने वाली है सत्ता? शी जिनपिंग के फैसलों ने बढ़ाई हलचल”
चीन, जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, वहां कुछ ऐसा हो रहा है जो सिर्फ बीजिंग तक सीमित नहीं बल्कि वैश्विक राजनीति में हलचल मचा रहा है। बीते कुछ हफ्तों में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा लिए गए अप्रत्याशित फैसलों से यह सवाल उठने लगे हैं — क्या चीन में सत्ता परिवर्तन की शुरुआत हो चुकी है?
एक ऐसा देश जो दशकों से कम्युनिस्ट पार्टी के मजबूत केंद्रीकृत नेतृत्व के अधीन है, वहां अचानक शक्तियों का बंटवारा, फैसलों में नरमी और आंतरिक बैठकों में असहमतियों की खबरें क्या संकेत देती हैं?
🔍 मामला क्या है?
शी जिनपिंग, जिन्हें आजीवन राष्ट्रपति कहा जाता है, उन्होंने बीते 12 सालों में चीन की सत्ता पर सबसे मजबूत पकड़ बनाई है।
-
उन्होंने 2018 में संविधान में संशोधन कर कार्यकाल की सीमा हटवा दी, जिससे वे आजीवन राष्ट्रपति बने रह सकते हैं।
-
मिलिट्री, पार्टी और सरकार — तीनों पिलर उनके सीधे नियंत्रण में रहे हैं।
लेकिन अब खबरें हैं कि उन्होंने अपनी कुछ प्रमुख शक्तियों को कम्युनिस्ट पार्टी के विभिन्न विभागों में बांट दिया है।
🧠 ये बदलाव क्यों मायने रखते हैं?
चीन में सत्ता केवल सरकार नहीं बल्कि कम्युनिस्ट पार्टी के जरिए संचालित होती है।
अगर कोई नेता शक्तियां बांटता है, तो वहां दो मतलब निकलते हैं:
-
या तो भीतर से दबाव बढ़ रहा है,
-
या फिर समर्थन खोने का डर सता रहा है।
शी जिनपिंग ने जिन विभागों को शक्तियां सौंपी हैं, उनमें से कुछ पहले उनके विरोधी गुटों से जुड़े माने जाते थे।
📉 क्या ये राजनीतिक हार की आहट है?
विश्लेषकों का कहना है कि शी जिनपिंग की लोकप्रियता हाल ही में घटती नजर आई है:
-
COVID ज़ीरो टॉलरेंस नीति के चलते जनता में नाराज़गी।
-
आर्थिक मंदी और रियल एस्टेट सेक्टर की गिरावट ने निवेशकों का भरोसा तोड़ा।
-
युवा बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर है, जिसे लेकर छात्रों में असंतोष है।
-
अमेरिका, भारत और जापान के साथ बढ़ती कूटनीतिक चुनौतियां भी चीन की रणनीति को सवालों के घेरे में ले आई हैं।
इन सबके चलते पार्टी के भीतर भी कई नेताओं को लगने लगा है कि अब शायद वक्त आ गया है बदलाव का।
🧭 गुप्त बैठकों और संकेतों का दौर
चीन की राजनीति कभी भी सार्वजनिक नहीं होती। वहां सब कुछ पर्दे के पीछे चलता है। लेकिन हाल ही में:
-
पार्टी की “बीहाइंड डोर्स” बैठकों में वरिष्ठ नेताओं के बीच टकराव की खबरें लीक हुईं।
-
कुछ बड़े नेताओं को लंबे समय से सार्वजनिक रूप से नहीं देखा गया, जो वहां ‘पार्टी पर्ज’ का इशारा होता है।
-
शी जिनपिंग ने अचानक अपनी विदेश यात्राएं रद्द कीं, जो पहले कभी नहीं होता था।
इन घटनाओं ने कूटनीतिक हलकों में चिंता बढ़ा दी है।
📌 सत्ता हस्तांतरण की शुरुआत?
कुछ विश्लेषक मानते हैं कि यह कोई खुला तख्तापलट नहीं बल्कि धीरे-धीरे ‘सॉफ्ट ट्रांज़िशन’ की प्रक्रिया हो सकती है।
जहां बिना किसी सार्वजनिक बयान के ही शी जिनपिंग की पकड़ कमजोर होती जाएगी और नए नेताओं को आगे बढ़ाया जाएगा।
🇮🇳 भारत के लिए क्या मायने?
अगर चीन में सत्ता परिवर्तन होता है, तो भारत को इसके तीन बड़े असर देखने को मिल सकते हैं:
-
सीमा विवाद पर नरमी — नए नेतृत्व के आने पर चीन LAC पर आक्रामक रुख छोड़ सकता है।
-
आर्थिक संबंधों में सुधार — भारत-चीन व्यापार को नई दिशा मिल सकती है।
-
ग्लोबल डिप्लोमेसी — अमेरिका, रूस, ब्रिक्स जैसे मंचों पर भारत को रणनीतिक बढ़त मिल सकती है।
शी जिनपिंग का यह कदम केवल आंतरिक प्रबंधन नहीं बल्कि संकेत है उस बदलाव का, जिसकी चर्चा अभी केवल फुसफुसाहटों में हो रही है। चीन, जो खुद को दुनिया की अगली सुपरपावर मानता है, अब एक आंतरिक मोड़ पर खड़ा है।
सत्ता का यह संभावित परिवर्तन न केवल चीन की दिशा तय करेगा, बल्कि पूरे एशिया और दुनिया की राजनीति पर असर डालेगा।
