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1947 आजादी महोत्सव के 5 किस्से: कैसी थी आजादी से पहले की शाम? पं नेहरु के साथ हुआ था ये वाकया

15 अगस्त 1947 को करीब 200 सालों तक अंग्रेजों के राज करने के बाद हिन्दुस्तानियों ने आज़ादी की नेमत पाई। लाखों कुर्बानियां देकर भारतीयों ने ये दौलत हासिल की। सीनें पर मुस्कुराकर गोलियां खाने के बाद कितने विरानों से गुजरने के बाद देश ने स्वतंत्रता प्राप्त की। देश की आजादी के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देशवासियों को अहिंसा और सत्य की राह दिखाकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुहिम चलाएं, जो मंजिल पाने में कामयाब रही। दुनिया भर के कई जानकारों के लिए भारत का अहिंसक तरीके से आजादी हासिल करना एक मिसाल बन गया।

14 अगस्त 1947 की रात जब भारत एक नए युग में प्रवेश करने वाला था। तब कुदरत भी जैसे देश की आजादी पर आनंद के आंसू बहा रही थी। 14 अगस्त की शाम से ही दिल्ली में बारिश हो रही थी लेकिन दिल्ली के रायसीना हिल्स पर बारिश की परवाह किए बिना 5 लाख लोग मौजूद थे और आजादी के दीवाने अपनी जगह से टस से मस नहीं हो रहे थे। रात 9 से 10 के बीच सरदार पटेल,पंडित नेहरू,डॉ राजेंद्र प्रसाद, लॉर्ड माउंटबेटन वायसराय हाउस यानी आज के राष्ट्रपति भवन पहुंचे। तब 14 अगस्त की रात 12 बजने में कुछ पल ही बचा था…इसी बीच पंडित नेहरू ने “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” ऐतिहासिक भाषण दिया है…नेहरू का ये भाषण 11 महानतम भाषण में शामिल है।

नेहरू के सचिव रहे एमओ मथाई अपनी किताब में लिखते हैं कि नेहरू कई दिनों से अपने भाषण “ड्रेस्ड विद डेस्टिनी” की तैयारी कर रहे थे। जब उनके पीए ने वो भाषण टाइप करके मथाई को दिया…तो उन्होंने देखा कि नेहरू ने एक जगह “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” मुहावरे का इस्तेमाल किया था। मथाई ने रोजेट का इंटरनेशनल शब्द कोष देखने के बाद उनसे कहा कि डेट शब्द इस मौके के लिए सही शब्द नहीं है क्योंकि अमेरिका में इसका आशय महिलाओं या लड़कियों के साथ घूमने के लिए किया जाता है। नेहरू के भाषण का आलेख अभी भी नेहरू म्यूजियम लाइब्रेरी में सुरक्षित है।

15 अगस्त 1947 को दिल्ली की सड़कों पर लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा था। शाम 5 बजे इंडिया गेट के पास प्रिंसेस पार्क में माउंटबेटन को भारत का तिरंगा झंडा फहराना था….उनके सलाहकारों का मानना था कि वहां करीब 30 हजार लोग आएंगे… लेकिन वहां 5 लाख लोग इकट्ठा थे…भारत के इतिहास में तब तक कुंभ स्नान को छोड़कर एक जगह पर इतने लोग कभी नहीं जुटे थे…माउंटबेटन की बग्गी के चारों ओर…लोगों का इतना हुजूम था कि वहां से नीचे उतरने के बारे में सोच भी नहीं पा रहे थें।

15 अगस्त 1947 को माउंटबेटन की 17 वर्षीया बेटी पामेला भी दो लोगों के साथ समारोह देखने पहुंची थी। अपनी किताब इंडिया रिमेंबर्ड में पामेला लिखती हैं कि सेंडल नहीं उतरने के कारण उन्होंने अपने हाथ खड़े कर दिए लेकिन पंडित नेहरू ने उनका हाथ पकड़ा और कहा कि तुम सैंडल पहने पहने ही लोगों के सिर के ऊपर पैर रखते हुए आगे बढ़ो वो बिल्कुल भी बुरा नहीं मानेंगे। पहले नेहरू लोगों के सिरों पर पैर रखते हुए मंच पर पहुंचे और फिर पामेला ने उनका अनुसरण किया था।

Mayank Dwivedi
Author: Mayank Dwivedi

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