दिल्ली चुनाव ने यूपी चुनाव में दिखे जय-वीरू की जोड़ी में दरार डाल दी है.यूपी में राहुल गांधी के साथ चुनाव लड़ने वाले अखिलेश यादव अब दिल्ली में कांग्रेस के विरोधी अरविंद केजरीवाल का साथ दे रहे है.जिसके बाद अब ये सवाल उठना लाजमी है की क्या राहुल गांधी और अखिलेश यादव की दोस्ती टूट चुकी है.अगले साल दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने वाले है.आम आदमी पार्टी अपनी सत्ता बचाने के लिए मैदान में उतकर काम कर रही है.अऱविंद केजरीवाल ने निर्भया कांड के काले दिन पर दिल्ली में महिला अदालत लगाई. जिसमें उन्होंने सपा प्रमुख अखिलेश यादव को भी बुलाया था.इस अदालत के जरिए केजरीवाल ने दिल्ली की सुरक्षा को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा.लेकिन केजरीवाल के साथ अखिलेश यादव की जोड़ी ने राजनीतिक गलियारों में अलग ही शोर मचा दिया.अब ये सवाल उठने लगा की क्या राहुल गांधी और अखिलेश यादव की दोस्ती टूट गई है.यूपी उपचुनाव में आपने देखा की नौ सीटों पर समाजवादी पार्टी अकेले लड़ी लेकिन कांग्रेस ने उनके टक्कर में अपने प्रत्याशियों को मैदान में नहीं उतारा.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भले ही एक साथ आए लेकिन जो रिजल्ट सामने आए,उसके बाद दोनों ही पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला लिया.दिल्ली में अब आप और कांग्रेस एक दूसरे के विरोधी हैं.ये तो बात हो गई राजनीतिक समीकरण की लेकिन अखिलेश यादव जिस पार्टी के साथ यूपी में अलायंस में हैं, वो दिल्ली में कांग्रेस के दुश्मन के साथ क्यों खड़े हो गए है.
आपको बता दें की इसके पीछे एक नहीं कई सारी वजह है.कुछ दिनों पहले ही इंडिया गठबंधन की कमान को लेकर खिंचतान देखने को मिली. कुछ लोग कांग्रेस का समर्थन कर रहे थे, तो कुछ लोग ममता बेनर्जी का. ममता दीदी ने गठबंधन की कमान संभालने की इच्छा जताई थी और सपा ने उनका समर्थन किया था. फिलहाल इंडिया गठबंधन की कमान कांग्रेस के हाथ में है.संसद में भी अवधेश प्रसाद की सीट को लेकर कांग्रेस और सपा के बीच तल्खी देखने को मिली.पहले अवधेश प्रसाद राहुल गांधी और अखिलेश यादव के साथ बैठते थे, लेकिन उनकी सीट को पीछे कर दिया गया. जिस पर कांग्रेस ने आवाज नहीं उठाई और न इस बात की जानकारी सपा को दी गई.इस मुद्दे पर दोनों में अनबंन हो गई.अडाणी के खिलाफ कांग्रेस जब प्रदर्शन कर रही थी, तब भी आप और सपा ने उनका साथ नहीं दिया और बोला सदन को चलने दे.संभल के मुद्दे पर भी कांग्रेस सपा एक दूसरे से अलग थलग दिखे.जिसके बाद अब सवाल उठ रहा की दोनों के बीच कुछ ठीक नहीं है.अखिलेश यादव पहले कह चुके हैं कि गठबंधन में क्षेत्रिय पार्टियों को कम आंकना नहीं चाहिए.इसलिए उनका केजरीवाल के साथ मिलना क्षेत्रिय पार्टी को एक करने की नीति के तौर पर भी देखा जा रहा है.
