भारत के सबसे बड़े और रंगों से भरे त्योहार होली की शुरुआत होलिका दहन(Holi 2025) से होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान किसने और क्यों दिया था? इस कहानी के पीछे छिपा है असत्य पर सत्य की विजय का संदेश। आइए जानते हैं इसकी पूरी कथा।
होलिका कौन थी?
पौराणिक कथा के अनुसार, होलिका राक्षस राजा हिरण्यकश्यप की बहन थी। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से घृणा करता था और चाहता था कि हर कोई सिर्फ उसकी पूजा करे। लेकिन उसका बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। इस कारण हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच जाता।
होलिका को वरदान कैसे मिला?
होलिका को यह अग्नि में न जलने का वरदान भगवान ब्रह्मा ने दिया था। कथा के अनुसार, होलिका ने घोर तपस्या कर यह वरदान प्राप्त किया कि अग्नि उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकती। लेकिन यह वरदान एक शर्त के साथ था कि यदि वह इसे किसी निर्दोष के खिलाफ प्रयोग करेगी, तो वह स्वयं नष्ट हो जाएगी। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए होलिका को आदेश दिया। वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन इस बार उसका वरदान निष्फल हो गया। भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जलकर भस्म हो गई। इसी घटना की याद में होलिका दहन मनाया जाता है।
होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक
होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन लोग लकड़ी और उपले जलाकर होलिका दहन करते हैं, फिर अगले दिन रंगों की होली खेली जाती है। माना जाता है कि होलिका दहन से नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है और घर-परिवार में सुख-शांति आती है। होलिका दहन का त्योहार हमें यह सिखाता है कि अहंकार और अन्याय अधिक समय तक टिक नहीं सकते। सत्य और धर्म की हमेशा जीत होती है। यही कारण है कि होलिका दहन के बाद रंगों की होली खेली जाती है, जो प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है।
