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Nepal Violence: नेपाल की सड़कों पर राजशाही के लिए बवाल क्यों हो रहा? समझिए पूरा खेल

Nepal Violence

नेपाल की सड़कों पर लोगों का आना नया नहीं है। 90 के दशक के बाद से लगभग हर 5 साल में जनता सड़कों पर होती है। एक बार फिर लोग उतर पड़े हैं, लेकिन इस बार मांग राजतंत्र और हिंदू राष्ट्र की है। अबतक जब भी आंदोलन या प्रदर्शन(Nepal Violence) हुए राजशाही खत्म करने को लेकर हुए लेकिन इस बार जनता लोकतंत्र को हटाकर राजतंत्र लाने की मांग कर रही है। बीते तीन दिनों में यह प्रदर्शन और गहरा होता जा रहा है। हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतरे और ‘राजा आओ देश बचाओ’ के नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों ने नेपाल का राष्ट्रीय झंडा और पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की तस्वीर के साथ प्रदर्शन(Nepal Violence) किया। इस प्रदर्शन में पुलिस पर हमला किया गया, हिंसक झड़प में दो लोगों की मौत हुई और सौ से अधिक लोग घायल हुए जिनमें से ज्यादातर सुरक्षाकर्मी हैं।

2008 में Nepal में हुई लोकतंत्र की शुरुआत

नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना भले ही 2008 में हुई, लेकिन शुरुआत 1990 में बहुदलीय लोकतंत्र की व्यवस्था के साथ किया गया था, लेकिन उस वक्त राजा का प्रभाव बना हुआ था। 2001 में बड़ा परिवर्तन हुआ क्योंकि राजा बीरेंद्र और उनके परिवार की हत्या हुई और ज्ञानेंद्र राजा बने और सत्ता संभाली। 2005 में ज्ञानेंद्र ने बहुदलीय लोकतंत्र की सरकार को भंग किया और सत्ता पर पूर्ण रूप से कब्जा किया लेकिन 2006 से राजशाही के खिलाफ आंदोलन(Nepal Violence) शुरू हुआ और 2008 में राजशाही को समाप्त कर लोकतंत्र स्थापित हुआ और नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया।

लोकतांत्रिक सरकार तो बनी लेकिन सरकार अस्थिर रही

2008 में माओवादियों के 10 साल के जनयुद्ध और मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के जन आंदोलन(Nepal Violence) के बाद बनी संवैधानिक सरकार बनी। नेपाल के 238 साल पुराने राजतंत्र को खत्म कर देश को गणतांत्रिक व्यवस्था में परिवर्तित कर दिया गया। लेकिन इस सियासी बदलाव के बावजूद नेपाली समाज में राजा के प्रति आकर्षण कम नहीं हुआ था। 2008 में सभी राजनीतिक दल माओवादियों के जनयुद्ध से परेशान थे और एक नई संविधानिक व्यवस्था की ओर बढ़ना चाहते थे। इसलिए संघात्मक शासन, गणतंत्र और धर्मनिरपेक्ष नेपाल की कल्पना का कोई विशेष विरोध नहीं हुआ, लेकिन राजा समर्थक ताकतें वहां मौजूद थीं।

राजतंत्र के समर्थन में फिर आवाज हो रही बुलंद

अब एक बार फिर जन आंदोलन(Nepal Violence) शुरू हुआ और लोकतंत्र की जगह राजतंत्र के समर्थन में आवाज बुलंद की जा रही है। 2008 में जब राजतंत्र खत्म कर लोकतंत्र लाया गया तब राजा ज्ञानेंद्र राजमहल से तो निकल गए, लेकिन वे उन लोगों के संपर्क में रहे, जिन्हें लोकतंत्र रास नहीं आ रहा था। देश में राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट की स्थिति में ये ताकतें मुखर हो रही हैं और एक बार ज्ञानेंद्र के जरिए राजतंत्र की वापसी चाह रही हैं। अभी नेपाल में वहां की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री हैं, देश अशांत है और लोगों का गुस्सा हिंसा के रूप में सामने आ रहा है।

राजनीतिक अस्थिरता नेपाल में संघर्ष का मुख्य कारण

2008 से अब तक नेपाल में 10 से अधिक बार सरकारें बदल चुकी हैं, और यह परिवर्तन विभिन्न राजनीतिक परिस्थितियों, गठबंधनों और विवादों के कारण हुआ है। यह दर्शाता है कि नेपाल में सरकार बनाने और बनाए रखने में कठिनाइयां रही हैं, और राजनीतिक अस्थिरता एक महत्वपूर्ण कारण रही है। सरकारों की अनियमितता, भ्रष्टाचार, और निर्णय लेने की प्रक्रिया में विफलता ने जनता को राजशाही के समय की स्थिरता याद दिलाई है। कुछ लोग मानते हैं कि एक मजबूत और केंद्रित नेतृत्व की आवश्यकता है, जो राजशाही के रूप में मिल सकता है। कई लोग महसूस करते हैं कि लोकतांत्रिक सरकारों ने उनके जीवन स्तर में सुधार नहीं किया है, और इससे असंतोष (Nepal Violence)बढ़ा है। ऐसे में राजशाही की पुरानी छवि, जिसमें लोगों की भलाई और सुरक्षा पर ध्यान दिया जाता था, एक विकल्प के रूप में सामने आती है।

कुर्सी दौड़ में उलझे नेता, जनता हुई परेशान

नेपाल के राजा, वीरेंद्र, को कई लोग एक लोकप्रिय और सम्मानित शासक मानते थे। उनकी मृत्यु के बाद, राजशाही के अंत के साथ जो अस्थिरता आई, उसने कुछ लोगों में यह विश्वास पैदा किया कि राजशाही का फिर से आना देश के लिए अच्छा हो सकता है। वर्तमान राजा के प्रति सहानुभूति उभरने के दो प्रमुख कारण हैं। पहला नेपाल के राजनीतिक दलों के बीच सिद्धांत की प्रतिस्पर्धा और सत्ता के प्रति अतिरिक्त अनुराग। 2008 से 2025 के 17 सालों में यहां 11 सरकारें बन चुकी हैं। इसका सीधा अर्थ है कि कोई भी सरकार डेढ़ साल के औसत कार्यकाल की रहीं। तीन प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस, माओवादी और एमाले आपस में कुर्सी दौड़ में इतना अधिक व्यस्त रहे कि जनता के प्रति इनका कोई ध्यान नहीं रहा।

राजशाही समर्थकों का जारी है प्रदर्शन

नेपाल में शुक्रवार को राजशाही समर्थकों ने एक बड़ा प्रदर्शन(Nepal Violence) आयोजित किया था। इस दौरान काठमांडू में प्रदर्शनकारियों ने कई जगहों पर तोड़फोड़ और आगजनी की। पुलिस और प्रदर्शन के दौरान हिंसक झड़प में एक पत्रकार समेत दो लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हुए हैं। यह प्रदर्शन राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) ने आयोजित किया था जिसे नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का समर्थन प्राप्त है और यह पार्टी देश में राजशाही स्थापित करने की मांग कर रही है।

Mayank Dwivedi
Author: Mayank Dwivedi

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