कैश कांड को लेकर चर्चा में जस्टिस यशवंत वर्मा(Justice Yashwant Verma) फिर से सुर्खियों में हैं। 21 अप्रैल को दिल्ली हाई कोर्ट ने एक नोटिफिकेशन जारी करते हुए आदेश दिया कि हाई कोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा की अध्यक्षता वाली बेंच द्वारा सुने जा रहे 52 मुकदमों की सुनवाई अब फिर से नए सिरे से होगी। जारी नोटिस में पूरे 52 मामलों की लिस्ट दी गई है, जिसमें सिविल रिट याचिकाएं भी शामिल हैं। ये मामले 2013 से 2025 तक के हैं। इनमें प्रॉपर्टी टैक्स से संबंधित NDMC अधिनियम के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 22 याचिकाएं शामिल हैं।
23 मार्च को जस्टिस वर्मा से न्यायिक कार्यभार लिया गया था वापस
जस्टिस वर्मा के खिलाफ तीन न्यायाधीशों की एक समिति आंतरिक जांच भी कर रही है। जस्टिस वर्मा(Justice Yashwant Verma) से 23 मार्च को न्यायिक कार्यभार वापस ले लिए गए थे। इसके बाद से वकील इन मामलो को दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डी. के. उपाध्याय के सामने पेश कर रहे थे। साथ ही आगे की कार्रवाई के लिए निर्देश मांग रहे थे। जस्टिस डी. के उपाध्याय ने वकीलों को सुझाव दिया था कि एक आवेदन उनके निजी सचिव या अदालत के रजिस्ट्रार जनरल को दें, साथ ही आश्वासन दिया था कि उनकी शिकायत पर विचार किया जाएगा। जिसके बाद हाई कोर्ट द्वारा जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है, ”सभी संबंधितों की जानकारी के लिए यह अधिसूचित किया जाता है कि जो मामले माननीय न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा और माननीय न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध थे, जिनमें सुनवाई की अगली तारीख दी गई है, लेकिन उनमें कोई आदेश नहीं निकाला गया है, उन्हें पहले से दी गई संबंधित तारीखों पर रोस्टर बेंच के समक्ष नए सिरे से सूचीबद्ध और सुना जाएगा।”
जस्टिस वर्मा के घर में मिले थे अधजले नोट
दरअसल,जस्टिस वर्मा(Justice Yashwant Verma) तब विवादों में घिर गए थे, जब उनके लुटियंस दिल्ली स्थित घर में आग लगने के दौरान नकदी पाए जाने के बाद ही से विवादों में घिरे हुए हैं। उनके घर के स्टोर रूम से 500-500 रुपए के जले नोटों के बंडलों से भरे बोरे मिले। सवाल खड़ा हुआ कि इतना कैश कहां से आया। इसके बाद जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर इलाहाबाद हाई कोर्ट में कर दिया गया था। जस्टिस वर्मा के खिलाफ तीन जजों की समिति आंतरिक जांच कर रही है।अब उन्हें नए सिरे से इलाहाबाद हाईकोर्ट में वापस भेज दिया गया है। हालांकि, भारत के मुख्य न्यायाधीश के निर्देशों के बाद उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है।
