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RSS सरकार्यवाह होसबोले के बाद अब उपराष्ट्रपति धनखड़ ने संविधान की प्रस्तावना को लेकर कही बड़ी बात, कांग्रेस पर भी साधा निशाना

उपराष्ट्रपति धनखड़

भारतीय संविधान की प्रस्तावना को लेकर देश की राजनीति में एक बार फिर उबाल है। हाल ही में आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने आह्वान किया है कि इस मुद्दे पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए कि ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में रहना चाहिए या नहीं। उन्होंने इसे ‘राजनीतिक अवसरवाद’ और संविधान की आत्मा पर ‘जानबूझकर किया गया हमला’ करार दिया। अब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कांग्रेस पर तीखा हमला बोला। धनखड़ ने कहा कि भारत के संविधान की आत्मा को 1976 में आपातकाल के दौरान जिस तरह बदला गया, वह न केवल लोकतंत्र का अपमान था, बल्कि भारत की सनातन आत्मा का भी अपवित्र अनादर है। धनखड़ ने शनिवार को कहा कि संविधान की प्रस्तावना में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह वह बीज है जिस पर यह दस्तावेज विकसित होता है।

प्रस्तावना को छूना पाप था, और वो पाप किया गया-धनखड़

धनखड़, ‘आंबेडकर के संदेश’ नामक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे. उन्होंने कहा, ‘प्रस्तावना को छूना पाप था, और वो पाप किया गया उस वक्त जब देश का लोकतंत्र जेल में था।’ उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस पर बयान देते हुए कहा कि प्रस्तावना को बदला नहीं जाता है। यह संविधान का बीज होती है। दुनिया के किसी अन्य देश में संविधान की प्रस्तावना को नहीं बदला गया है, यह सिर्फ भारत में देखने को मिलता है। धनखड़ ने सीधे शब्दों में कहा, ‘प्रस्तावना किसी भी संविधान की आत्मा होती है। हमारे संविधान निर्माताओं ने इसमें जो शब्द रखे, वे सोच-समझकर डाले गए थे। लेकिन जब 1976 में आपातकाल लगा और देश के लोग मौलिक अधिकारों से वंचित थे, उस समय प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ जैसे शब्द जोड़ दिए गए।’ उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसा दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश में नहीं हुआ. ‘भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां संविधान की आत्मा को बिना जनसहमति और खुले विमर्श के बदल दिया गया।’

‘बाबा साहेब ने भी संविधान पर बहुत मेहनत की थी’

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आगे कहा कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने भी संविधान पर बहुत मेहनत की थी। ऐसे में जाहिर है उन्होंने भी इन शब्दों पर ध्यान दिया होगा, लेकिन इन्हें संविधान की मूल प्रस्तावना में नहीं रखा गया था। धनखड़ ने कहा कि जस्टिस हेगड़े और जस्टिस मुखर्जी ने एक ही फैसले में कहा कि संविधान की प्रस्तावना, संविधान की आत्मा की तरह अपरिवर्तनीय है, क्योंकि यह मौलिक मूल्यों और दर्शन को मूर्त रूप देती है, जिस पर संविधान आधारित है। यह किसी संविधान निर्माता से कम नहीं है। उस फैसले में शामिल एक अन्य प्रसिद्ध जज जस्टिस सीकरी कहते हैं कि हमारे संविधान की प्रस्तावना अत्यंत महत्वपूर्ण है, और संविधान को प्रस्तावना में व्यक्त भव्य और महान दृष्टिकोण के प्रकाश में पढ़ा और व्याख्या की जानी चाहिए।

‘आपातकाल के दौरान प्रस्तावना बदलना संविधान की आत्मा को बदलने जैसे’

संविधान संशोधन का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा “हम संविधान की आत्मा को बदल रहे हैं। वास्तव में, यह शब्दों का एक झटके में हुआ परिवर्तन था जो उस अंधकारपूर्ण काल में किया गया,जो भारतीय संविधान के लिए सबसे कठिन समय था. अगर आप गहराई से सोचें, तो यह एक ऐसा परिवर्तन है जो अस्तित्वगत संकट को जन्म देता है। ये जोड़े गए शब्द नासूर हैं. ये उथल-पुथल पैदा करेंगे। आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में इन शब्दों का जोड़ा जाना संविधान निर्माताओं की मानसिकता के साथ धोखा है। यह हमारे हजारों वर्षों की सभ्यता की संपदा और ज्ञान का अपमान है। यह सनातन की आत्मा का अपवित्र अनादर है।”

 

Mayank Dwivedi
Author: Mayank Dwivedi

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