“सार्क को किनारे कर चीन-पाकिस्तान की नई चाल: क्या दक्षिण एशिया में बन रहा है नया गुट?”
जब बात दक्षिण एशिया की आती है, तो सार्क (SAARC) संगठन का नाम सबसे पहले ज़हन में आता है। भारत, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और मालदीव जैसे देशों को एक मंच पर लाने वाला यह संगठन क्षेत्रीय सहयोग का प्रतीक रहा है। लेकिन अब इस संगठन की सक्रियता कम होती जा रही है — और इसी खालीपन का फायदा उठाने की नई चाल चल रहे हैं चीन और पाकिस्तान।
हाल ही में चीन के कुनमिंग शहर में चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच एक अहम त्रिपक्षीय बैठक हुई, जिसने अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।
🇨🇳 चीन की योजना: “सार्क 2.0”?
इस बैठक का मकसद सिर्फ व्यापार या सीमित सहयोग नहीं था, बल्कि सूत्रों के मुताबिक दक्षिण एशिया में एक नए क्षेत्रीय संगठन की नींव रखने की कोशिश की जा रही है — जो SAARC को साइडलाइन कर दे और चीन को इस क्षेत्र में सीधी राजनीतिक पकड़ दिला दे।
🤝 क्यों मिला पाकिस्तान और बांग्लादेश का साथ?
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पाकिस्तान तो पहले से ही सार्क की बैठकों को लगातार बाधित करता रहा है। भारत विरोध के चलते उसका व्यवहार हमेशा ही टकराव वाला रहा है।
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बांग्लादेश की मौजूदगी थोड़ी चौंकाने वाली है, लेकिन माना जा रहा है कि चीन द्वारा किए गए भारी निवेश (Belt and Road Initiative – BRI) और आर्थिक आकर्षण के चलते ढाका इस मंच का हिस्सा बना।
🇮🇳 भारत की भूमिका को क्यों किया जा रहा है किनारे?
भारत, जो दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था है, सार्क का प्रमुख स्तंभ रहा है। लेकिन भारत ने चीन के BRI और पाकिस्तान के आतंकी एजेंडे के खिलाफ स्पष्ट रुख लिया है। यही वजह है कि चीन-पाकिस्तान अब “सार्क जैसा लेकिन भारत के बिना” संगठन बनाना चाहते हैं।
🧠 रणनीति क्या है इस नए गुट की?
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आर्थिक निर्भरता बढ़ाना: चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच व्यापार, इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना।
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सुरक्षा सहयोग: संयुक्त सैन्य अभ्यास और खुफिया साझेदारी।
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कूटनीतिक दबाव: भारत को दक्षिण एशिया में अकेला दिखाने की कोशिश।
🌏 क्षेत्रीय संतुलन के लिए क्या खतरे?
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भारत की भूराजनीतिक पकड़ पर असर: अगर यह गुट सफल होता है, तो नेपाल, श्रीलंका, मालदीव जैसे देशों पर भी चीन का असर बढ़ सकता है।
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सार्क की निष्क्रियता और समाप्ति का खतरा: भारत और मित्र देशों के सहयोग के बिना सार्क पहले ही ठप पड़ा है।
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चीन का बढ़ता सैन्य-सामरिक प्रभाव: चीन पहले ही हिंद महासागर में मौजूदगी बढ़ा रहा है — अब ये नया गुट उसे और मजबूती देगा।
🔍 भारत की प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए?
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मित्र देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध मजबूत करना।
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आर्थिक निवेश और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के ज़रिए अपना प्रभाव बढ़ाना।
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सार्क को फिर से जीवंत करने के प्रयास तेज़ करना।
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चीन के दखल को कूटनीतिक रूप से चुनौती देना।
दक्षिण एशिया की भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति को अगर कोई सही दिशा में बनाए रख सकता है तो वह भारत है। चीन-पाकिस्तान की ये नई चाल शॉर्टकट की तरह भले लग रही हो, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं। ज़रूरत है कि भारत अपने कूटनीतिक कौशल से ना सिर्फ अपने पड़ोसियों को जोड़े रखे, बल्कि चीन के इस नए संगठन की राजनीतिक सच्चाई को उजागर भी करे।
