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वक्फ बोर्ड का CEO गैर-मुस्लिम होने पर रोक नहीं, पर… सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश

वक्फ बोर्ड का CEO गैर-मुस्लिम होने पर रोक नहीं

वक्फ बोर्ड का CEO गैर-मुस्लिम होने पर रोक नहीं, पर… सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश

भारत में वक्फ बोर्ड और वक्फ संपत्तियों से जुड़ा मामला हमेशा संवेदनशील और चर्चाओं में रहा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर एक अहम फैसला सुनाया है जिसने नए सिरे से बहस छेड़ दी है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि वक्फ बोर्ड का CEO गैर-मुस्लिम हो सकता है, लेकिन इसके साथ ही कुछ महत्वपूर्ण शर्तें भी तय की गई हैं। आइए समझते हैं कि यह पूरा मामला है क्या, कब से विवाद चला आ रहा है और अब आगे क्या असर होगा।


क्या हुआ?

सुप्रीम कोर्ट में यह मामला तब उठा जब कुछ याचिकाकर्ताओं ने सवाल किया कि क्या किसी गैर-मुस्लिम को वक्फ बोर्ड में CEO जैसी अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है? उनका कहना था कि चूंकि वक्फ बोर्ड सीधे मुस्लिम समाज और धार्मिक संपत्तियों से जुड़ा है, इसलिए इसकी कमान गैर-मुस्लिम को देना गलत होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर विचार करते हुए कहा कि संविधान में धर्म के आधार पर इस पद पर किसी को रोकने का प्रावधान नहीं है। यानी कानून के हिसाब से किसी गैर-मुस्लिम को भी वक्फ बोर्ड का CEO बनाया जा सकता है।

लेकिन कोर्ट ने एक संतुलन भी पेश किया। आदेश में कहा गया कि—

  • केंद्रीय वक्फ परिषद के 22 सदस्यों में से अधिकतम 4 ही गैर-मुस्लिम हो सकते हैं

  • राज्य वक्फ बोर्ड्स के 11 सदस्यों में से केवल 3 ही गैर-मुस्लिम हो सकते हैं


क्यों हुआ?

यह फैसला इसलिए अहम है क्योंकि वक्फ संपत्तियां केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण होती हैं। इनसे जुड़ी जमीनें और संस्थान लाखों लोगों के हितों से जुड़े होते हैं।

अगर बोर्ड में सिर्फ एक ही समुदाय के लोग हों तो कभी-कभी पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं। इसी वजह से कानून में गैर-मुस्लिम सदस्यों को भी शामिल करने की व्यवस्था की गई थी।

हालांकि, धार्मिक भावनाओं का भी ख्याल रखना जरूरी है। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने गैर-मुस्लिमों की संख्या सीमित रखी है, ताकि संतुलन बना रहे और मुस्लिम समुदाय का भरोसा भी बना रहे।


कब हुआ?

यह आदेश सितंबर 2025 में आया है। इससे पहले भी वक्फ बोर्ड के गठन और उसके संचालन को लेकर कई बार विवाद हो चुके हैं।

2013 में वक्फ एक्ट में संशोधन किया गया था, जिसके तहत बोर्ड की संरचना, सदस्यों की संख्या और भूमिकाओं को लेकर स्पष्ट नियम बनाए गए थे। इसी एक्ट के आधार पर अब सुप्रीम कोर्ट ने अपनी व्याख्या दी है और स्पष्ट किया है कि गैर-मुस्लिमों को बाहर नहीं किया जा सकता।


आगे क्या होगा?

इस फैसले के बाद राज्य और केंद्र सरकारों को अपने-अपने वक्फ बोर्ड्स में नए सिरे से विचार करना पड़ सकता है। जहां पहले गैर-मुस्लिम सदस्य बनाए गए थे, वहां अब यह जांच करनी होगी कि उनकी संख्या तय सीमा से ज्यादा तो नहीं है।

साथ ही, मुस्लिम समाज के भीतर भी यह चर्चा तेज हो सकती है कि गैर-मुस्लिम CEO या सदस्य कितना प्रभाव डालेंगे। एक वर्ग इसे पारदर्शिता और लोकतांत्रिक संतुलन की ओर कदम मानेगा, जबकि दूसरा वर्ग इसे धार्मिक मामलों में दखल मान सकता है।


सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश ने साफ कर दिया है कि वक्फ बोर्ड पूरी तरह से किसी एक धर्म का “क्लोज़्ड ग्रुप” नहीं हो सकता। भारतीय संविधान की भावना यही कहती है कि सभी नागरिकों को समान अवसर मिलना चाहिए। लेकिन साथ ही, धार्मिक भावनाओं का सम्मान भी जरूरी है।

यानी गैर-मुस्लिम वक्फ बोर्ड में CEO या सदस्य बन सकते हैं, लेकिन उनकी संख्या सीमित रहेगी। यह फैसला निश्चित तौर पर आने वाले समय में वक्फ संपत्तियों और उनके प्रबंधन को लेकर एक नया अध्याय लिखेगा।

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Author: newsviewss

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