तुर्किए की नई चाल: पाकिस्तान को S-400 बेचना और अमेरिका से F-35 ख़रीदना – इजरायल और भारत पर निशाना?
दुनिया की राजनीति में हर दिन एक नई कहानी लिखी जा रही है, और इस बार केंद्र में है तुर्किए। खबर है कि तुर्किए पाकिस्तान को रूस से खरीदा गया S-400 मिसाइल सिस्टम बेचने की योजना बना रहा है और उसी वक्त अमेरिका से F-35 फाइटर जेट्स की डील करने का मन भी बना रहा है। इस डिप्लोमैटिक ट्विस्ट ने इजरायल को गंभीर चिंता में डाल दिया है, वहीं अमेरिका की स्थिति भी असहज होती दिखाई दे रही है।
F-35: केवल विमान नहीं, तकनीक का शिखर
F-35 एक ऐसा फाइटर जेट है जिसे अमेरिका ने अत्याधुनिक तकनीकों से लैस किया है। यह स्टेल्थ, स्पीड, और स्ट्राइक के मामले में दुनिया के सबसे शक्तिशाली विमानों में गिना जाता है। अब तक अमेरिका इस तकनीक को केवल अपने करीबी सहयोगियों को ही देता आया है — जैसे इजरायल, जापान, यूएई और कुछ नाटो सहयोगी।
पर तुर्किए की मांग को लेकर अब अमेरिका के लिए एक धर्मसंकट खड़ा हो गया है।
तुर्किए की दोहरी रणनीति
तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैय्यप एर्दोआन की विदेश नीति हाल के वर्षों में काफी आक्रामक रही है। रूस के साथ S-400 डील के चलते अमेरिका ने तुर्किए को पहले ही F-35 प्रोग्राम से बाहर कर दिया था। अब तुर्किए फिर से अमेरिका की तरफ झुकाव दिखा रहा है, मगर इस बार पाकिस्तान को S-400 देने की बात से अमेरिका और इजरायल दोनों की नींद उड़ी हुई है।
पाकिस्तान को S-400 क्यों?
पाकिस्तान हमेशा से भारत की सैन्य शक्ति से असंतुलित महसूस करता रहा है। भारत ने पहले ही रूस से S-400 खरीद लिए हैं। ऐसे में पाकिस्तान के लिए यह डील सामरिक रूप से “गेमचेंजर” साबित हो सकती है। तुर्किए और पाकिस्तान की करीबी इस समय चरम पर है — धार्मिक, सामरिक और रणनीतिक कारणों से।
तुर्किए पाकिस्तान को अगर ये सिस्टम देता है, तो दक्षिण एशिया की रणनीतिक स्थिति पूरी तरह से बदल सकती है।
इजरायल की चिंता क्यों जायज़ है?
इजरायल के लिए F-35 एक सुरक्षा कवच की तरह है। उन्हें डर है कि अगर तुर्किए को ये विमान मिल गए, तो ये तकनीक प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अमेरिका विरोधी या इजरायल विरोधी ताकतों तक पहुंच सकती है — खासकर जब तुर्किए की पाकिस्तान और ईरान से नजदीकियां लगातार बढ़ रही हैं।
इजरायली मीडिया में इसे लेकर पहले से ही काफी रोष है और अमेरिकी कांग्रेस पर भी दबाव बन रहा है कि तुर्किए को इस डील से दूर रखा जाए।
ट्रंप पर बढ़ा दबाव
हालांकि डोनाल्ड ट्रंप अब सत्ता में नहीं हैं, मगर उनके दौर की डील और नीति अब भी असर डालती हैं। इजरायल ने ट्रंप के उस बयान को उठाया है जिसमें उन्होंने F-35 को ‘केवल ट्रस्टेड पार्टनर्स’ को देने की बात कही थी।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिकी प्रशासन इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है — क्या वो फिर से तुर्किए को मौका देता है, या इजरायल और भारत की चिंता को प्राथमिकता।
तुर्किए की ये चाल न केवल मध्य एशिया बल्कि दक्षिण एशिया की सुरक्षा नीति को भी हिला सकती है। अमेरिका के लिए यह एक कठिन घड़ी है — वह अगर तुर्किए की मांग मानता है, तो अपने पुराने सहयोगियों से दूरी बना लेगा। और अगर नहीं मानता, तो तुर्किए रूस या चीन की ओर और झुक सकता है।
अब यह देखने की बात है कि अमेरिका किस तरफ झुकता है — सुरक्षा प्राथमिकता की ओर या रणनीतिक संतुलन की ओर।
दुनिया की राजनीति में हर दिन एक नई कहानी लिखी जा रही है, और इस बार केंद्र में है तुर्किए। खबर है कि तुर्किए पाकिस्तान को रूस से खरीदा गया S-400 मिसाइल सिस्टम बेचने की योजना बना रहा है और उसी वक्त अमेरिका से F-35 फाइटर जेट्स की डील करने का मन भी बना रहा है। इस डिप्लोमैटिक ट्विस्ट ने इजरायल को गंभीर चिंता में डाल दिया है, वहीं अमेरिका की स्थिति भी असहज होती दिखाई दे रही है।
F-35: केवल विमान नहीं, तकनीक का शिखर
F-35 एक ऐसा फाइटर जेट है जिसे अमेरिका ने अत्याधुनिक तकनीकों से लैस किया है। यह स्टेल्थ, स्पीड, और स्ट्राइक के मामले में दुनिया के सबसे शक्तिशाली विमानों में गिना जाता है। अब तक अमेरिका इस तकनीक को केवल अपने करीबी सहयोगियों को ही देता आया है — जैसे इजरायल, जापान, यूएई और कुछ नाटो सहयोगी।
पर तुर्किए की मांग को लेकर अब अमेरिका के लिए एक धर्मसंकट खड़ा हो गया है।












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